By : अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र
जीवन परिचय :
गोविंदस्वामी की वल्लभ सम्प्रदाय भक्त कवियों में गणना की जाती है। ये गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था तथा अंतरी के रहने वाले थे। (हिंदी साहित्य का इतिहास :आचार्य रामचन्द्र शुक्ल :पृष्ठ १७९ ) यहीं इनका मिलाप गो ० विट्ठलनाथ से हुआ। इनसे दीक्षा लेने के बाद गोवर्द्धन पर्वत पर रहने लगे। आज भी वह स्थान ,जहाँ थे गोविंदस्वामी की कदंब खंडी कहलाता है। डा ० दीन दयाल गुप्त ने इनका समय वि ० सं ० १५६२ के लगभग मृत्यु वि ० सं ० १६४२ मानी है। (अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय ;पृष्ठ २६६-७२ )
गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य होने के पूर्व भी ये एक अच्छे गवैये थे और काव्य पाठ भी करते थे। उस समय इनकी कविता का क्या विषय था यह ज्ञात नहीं है लेकिन विट्ठलनाथ सम्पर्क में आने के बाद इनकी कविता का मुख्य विषय कृष्ण की सख्य और मधुर-लीला के पदों का गान हो गया।
रचनाये :
अशर्फी लाल मिश्र
जीवन परिचय :
गोविंदस्वामी की वल्लभ सम्प्रदाय भक्त कवियों में गणना की जाती है। ये गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था तथा अंतरी के रहने वाले थे। (हिंदी साहित्य का इतिहास :आचार्य रामचन्द्र शुक्ल :पृष्ठ १७९ ) यहीं इनका मिलाप गो ० विट्ठलनाथ से हुआ। इनसे दीक्षा लेने के बाद गोवर्द्धन पर्वत पर रहने लगे। आज भी वह स्थान ,जहाँ थे गोविंदस्वामी की कदंब खंडी कहलाता है। डा ० दीन दयाल गुप्त ने इनका समय वि ० सं ० १५६२ के लगभग मृत्यु वि ० सं ० १६४२ मानी है। (अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय ;पृष्ठ २६६-७२ )
गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य होने के पूर्व भी ये एक अच्छे गवैये थे और काव्य पाठ भी करते थे। उस समय इनकी कविता का क्या विषय था यह ज्ञात नहीं है लेकिन विट्ठलनाथ सम्पर्क में आने के बाद इनकी कविता का मुख्य विषय कृष्ण की सख्य और मधुर-लीला के पदों का गान हो गया।
रचनाये :
- स्फुट पद (प्रकाशन विद्या विभाग कांकरोली )
माधुर्य भक्ति :
गोविंदस्वामी ने आराध्य रूप में कृष्ण का स्मरण किया है। श्रीकृष्ण परम रसिक सुन्दरता के मूर्तमान स्वरुप हैं। इनका अंग-प्रत्यंग कान्ति से दीप्त है उनकी छवि को देखकर चन्द्रमा आदि की ज्योति भी तुच्छ प्रतीत होती है:
कहो न परै हो रसिक कुँवर की कुँवराई।
कोटि मदन नख ज्योति ,विलोकत परसत नव इन्दु किरण की जुन्हाई।।
कंकण वलय हारगत गत मोती देखियत अंग अंग में वह झाई।
सुघर सुजान स्वरुप सुलक्षण गोविन्द प्रभु सब विधि सुन्दरताई।।(गोविन्दस्वामी :पद ४ २ ८ )
गोविन्दस्वामी ने कृष्ण की मधुर लीलाओं में विशेष रूप से संयोग पक्ष की लीलाओं का ही वर्णन किया है। इसमें चीरहरण पनघट लीला ,रास,जल-विहार, सुरत आदि मुख्य हैं। इन संयोग लीलाओं का आरम्भ हास-परिहास के बीच अत्यधिक स्वाभाविक ढंग से हुआ है। निम्न पद में एक ओर गोपियों में प्रथम संकोच का भाव लक्षित होता है और दूसरी ओर कृष्ण के प्रति आसक्ति का संकेत मिलता है :
क्यों निकसों इह खोरि सांकरी।
नंदनंदन ठाढ़े मग रोके भारत ताकि उरोज मांझरी।।
चंचल नैन उरज अनियारे तन मन देखियत मदन छाकरी।
जानि न दै मुसकाइनु लावत आनि देत कर टेकि लाकरी।।
बाँहि मरोरि दियो मुख चुम्बन हँसि हँसि दीनी पांइ आंकरी।
'गोविन्द 'प्रभु गिरधर मदनमोहन बदन विलोकत भई रांक री।।(गोविन्दस्वामी ;पद ४५ )
लोक-लाज वश गोपियाँ कृष्ण की इस छेड़-छाड़ का उलाहना लेकर यशोदा के पास पहुँचती हैं किन्तु वहाँ की स्थित देखकर ये चकित रह जाती हैं। अभी तक वे केवल कृष्ण की रूप माधुरी से परिचित थीं,पर यहाँ उनकी चतुराई के भी प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं :
बरजो जसोमति अपनों लाल। जमुना तट ठाढ़ो करत आल।।
मेरी बाँह मरोरी तोरी। अरु कचुकी फारी परसि गाल।।
भरन न देत जल श्री [गोपाल। मुख पर डालत लै जु गुलाल।।
मेरे माथे पति हैं रिसाल। सास ननद मोहे करें जंजाल।।
सुनि चकित भए लोचन विसाल। बैठे गोद गोविंद बाल।।(गोविन्दस्वामी ;पद १३६ )
संभोग-सुख-हर्षिता गोपी की सुरतान्त छवि का सुन्दर परिचय हमें इस पद में मिलता है :
अति रसमति री तेरे नैन।
दौरि दौरि जात निकट श्रवनन के हँसि मिलवत
करि कटाक्ष कहत रजनी रति बैन।।
लटपटी चालि अटपटी बंदसि सगबगी अलक
बदन पर विथुरी अंग अंग प्रफुल्लित मैन।
गोविंद बलि सखी कहै मैं तो तब ही लखी
मेरे जिय तब ही ते सुख चैन ।।(गोविन्दस्वामी ;पद ४६५ )
वियोग पक्ष में पूर्वानुराग के पदों के अतिरिक्त दो चार पदों में गोविन्दस्वामी ने राधा के मान का भी सुन्दर वर्णन किया है :
सुनि री स्यामा चतुर सयानी।
गिरधर पिय तव विरह विकल भए कौन बात तैं ठानी।।
राधे राधे जपत कुंजनि में करति बात एक छानी।
ऐसो समय फेरि नहिं पावै कहति हौं तेरी बानी।।
रसिक राइ वे त्रिभुवननाइक मिलिहौं जाइ आनी।
'गोविंद 'प्रभु पिय पे जु चली उठि कीनी जो मनमानी।।(गोविन्दस्वामी ;पद ४८८ )
साभार स्रोत:
साभार स्रोत:
- हिंदी साहित्य का इतिहास :आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
- ब्रजभाषा के कृष्ण- काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण:हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७
- अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय:डॉ दीनदयाल गुप्त
- गोविन्दस्वामी पद संग्रह :प्रकाशन :विद्या विभाग कांकरोली
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