By : अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र
जीवन परिचय :
चतुर्भुजदास की वल्लभ सम्प्रदाय के भक्त कवियों में गणना की जाती है ये कुम्भनदास के पुत्र और गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। डा ० दीन दयाल गुप्त के अनुसार इनका जन्म वि ० सं ० १५९७ और मृत्यु वि ० सं ० १६४२ में हुई थी। (अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय ;पृष्ठ २६५-२६६ ) इनका जन्म जमुनावती गांव में गौरवा क्षत्रिय कुल में हुआ था। वार्ता के अनुसार ये स्वभाव से साधु और प्रकृति से सरल थे। इनकी रूचि भक्ति में आरम्भ से ही थी। अतः भक्ति भावना की इस तीव्रता के कारण श्रीनाथ जी के अन्तरंग सखा बनने का सम्मान प्राप्त कर सके।
रचनाएँ :
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने अपने साहित्य के इतिहास के ग्रन्थ में निम्न रचनाओं का उल्लेख किया है :
अशर्फी लाल मिश्र
जीवन परिचय :
चतुर्भुजदास की वल्लभ सम्प्रदाय के भक्त कवियों में गणना की जाती है ये कुम्भनदास के पुत्र और गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। डा ० दीन दयाल गुप्त के अनुसार इनका जन्म वि ० सं ० १५९७ और मृत्यु वि ० सं ० १६४२ में हुई थी। (अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय ;पृष्ठ २६५-२६६ ) इनका जन्म जमुनावती गांव में गौरवा क्षत्रिय कुल में हुआ था। वार्ता के अनुसार ये स्वभाव से साधु और प्रकृति से सरल थे। इनकी रूचि भक्ति में आरम्भ से ही थी। अतः भक्ति भावना की इस तीव्रता के कारण श्रीनाथ जी के अन्तरंग सखा बनने का सम्मान प्राप्त कर सके।
रचनाएँ :
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने अपने साहित्य के इतिहास के ग्रन्थ में निम्न रचनाओं का उल्लेख किया है :
- द्वादश यश
- हित जू को मंगल
- भक्ति प्रकाश
इसके अतिरिक्त कुछ स्फुट पद।
माधुर्य भक्ति :
चतुर्भुजदास के आराध्य नन्दनन्दन श्रीकृष्ण हैं। रूप, गुण और प्रेम सभी दृष्टियों से ये भक्त का मनोरंजन करने वाले हैं। इनकी रमणीयता भी विचित्र है ,नित्यप्रति उसे देखिये तो उसमें नित्य नवीनता दिखाई देगी ;
माई री आज और काल्ह और ,
दिन प्रति और,देखिये रसिक गिरिराजबरन।
दिन प्रति नई छवि बरणै सो कौन कवि ,
नित ही श्रृंगार बागे बरत बरन।।
शोभासिन्धु श्याम अंग छवि के उठत तरंग ,
लाजत कौटिक अनंग विश्व को मनहरन।
चतुर्भुज प्रभु श्री गिरधारी को स्वरुप ,
सुधा पान कीजिये जीजिए रहिये सदा ही सरन।।
प्रेम के क्षेत्र में भक्तों के लिए आदर्श गोपियाँ भी श्रीकृष्ण की रूप माधुरी से मुग्ध हैं। उसकी सुन्दर छवि को देखकर गोपियों का तन मन सभी कुछ पराया हो जाता है वे सदा श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती हैं। इसी से उनके मन का संताप दूर होता है। श्रीकृष्ण से वे लोक- लाज ,कुल के नियम एवं बन्धन सब तोड़कर मिलना चाती हैं :
तब ते और न कछु सुहाय।
सुन्दर श्याम जबहिं ते देखे खरिक दुहावत गाय।।
आवति हुति चली मारग सखि, हौं अपने सति भाय।
मदन गोपाल देखि कै इकटक रही ठगी मुरझाय।।
बिखरी लोक लाज यह काजर बंधु अरु भाय।
दास चतुर्भुज प्रभु गिरिवरधर तन मन लियो चुराय।।
गोपियों के मन को वश में करने में कृष्ण की रूप माधुरी के साथ- साथ उनके गुण तथा मुरली माधुरी का भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है। उनकी मुरली माधुरी का भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है। मुरली माधुरी तो चेतन-अचेतन सभी को अपनी तान से मुग्ध कर देती है। अतः बन में जाती हुई गोपी के कान में पहुँचकर सप्त-स्वर बंधान युक्त मुरली की ध्वनि यदि अपना प्रभाव डालती हो तो आश्चर्य क्या :
बेनु धरयो कर गोविन्द गुन निधान।
जाति हुति बन काज सखिन संग ठगी धुनि सुनि कान।।
मोहन सहस कल खग मृग पसु बहु बिधि सप्तक सुर बंधान।
चतुर्भुजदास प्रभु गिरिधर तन मन चोरि लियो करि मधुर गान।।
इस प्रकार श्रीकृष्ण की रूप माधुरी और मुरली माधुरी से हरितमना गोपी की दशा का चित्रण चतुर्भुजदास ने बहुत सुन्दर दंग से निम्न पद में किया है :
ठाढ़ी एक बात सुनि धीरी धीरी।
भोरहि ते कहा मटुकी लिए डोलति ब्रज बासिनी अहीरी।।
माधो माधो कहि कहि टेरत बिसर गयो तोहि नाम दही री।
न जानों कहुँ मिले श्यामघन यह रट लागि रही री।।
मोहन मूरति मन हर लीनो नहिं समुझत कहु काहू कही री।
चतुर्भुजदास विरह गिरधर के सब बन फिरत बही री।।
चतुर्भुजदास ने कृष्ण की प्रेम-लीलाओं का वर्णन विविध रूपों में किया है। उसमें संयोग की आह्लादकता और वियोग की तड़पन दोनों का वर्णन आ गया है। संयोग पक्ष की लीलाओं में वन-विहार ,झूलन ,सुरतान्त-छवि तथा रति का वर्णन मुख्य रूप से किया गया है। रति-वर्णन में कवि ने उचित मर्यादा का पालन किया है। अतः विहार-वर्णन में स्पष्टता की अपेक्षा सांकेतिकता अधिक है :
पौढ़े प्यारी राधिका के संग।
नव किशोर और नव किशोरी गौर श्यामल अंग।।
स्वच्छ सेज सुगन्ध सीतल रत्नजटित पर्यंक।
दशन खण्डित बदन बीरे भरे रति रस-रंग।।
उपजी चतुर्भुजदास दुहूँ दिशि प्रेम सिन्धु तरंग।
रसिकनी अरु रसिक गिरधर मुदित जीत अनंग।।
साभार स्रोत :
तब ते और न कछु सुहाय।
सुन्दर श्याम जबहिं ते देखे खरिक दुहावत गाय।।
आवति हुति चली मारग सखि, हौं अपने सति भाय।
मदन गोपाल देखि कै इकटक रही ठगी मुरझाय।।
बिखरी लोक लाज यह काजर बंधु अरु भाय।
दास चतुर्भुज प्रभु गिरिवरधर तन मन लियो चुराय।।
गोपियों के मन को वश में करने में कृष्ण की रूप माधुरी के साथ- साथ उनके गुण तथा मुरली माधुरी का भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है। उनकी मुरली माधुरी का भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है। मुरली माधुरी तो चेतन-अचेतन सभी को अपनी तान से मुग्ध कर देती है। अतः बन में जाती हुई गोपी के कान में पहुँचकर सप्त-स्वर बंधान युक्त मुरली की ध्वनि यदि अपना प्रभाव डालती हो तो आश्चर्य क्या :
बेनु धरयो कर गोविन्द गुन निधान।
जाति हुति बन काज सखिन संग ठगी धुनि सुनि कान।।
मोहन सहस कल खग मृग पसु बहु बिधि सप्तक सुर बंधान।
चतुर्भुजदास प्रभु गिरिधर तन मन चोरि लियो करि मधुर गान।।
इस प्रकार श्रीकृष्ण की रूप माधुरी और मुरली माधुरी से हरितमना गोपी की दशा का चित्रण चतुर्भुजदास ने बहुत सुन्दर दंग से निम्न पद में किया है :
ठाढ़ी एक बात सुनि धीरी धीरी।
भोरहि ते कहा मटुकी लिए डोलति ब्रज बासिनी अहीरी।।
माधो माधो कहि कहि टेरत बिसर गयो तोहि नाम दही री।
न जानों कहुँ मिले श्यामघन यह रट लागि रही री।।
मोहन मूरति मन हर लीनो नहिं समुझत कहु काहू कही री।
चतुर्भुजदास विरह गिरधर के सब बन फिरत बही री।।
चतुर्भुजदास ने कृष्ण की प्रेम-लीलाओं का वर्णन विविध रूपों में किया है। उसमें संयोग की आह्लादकता और वियोग की तड़पन दोनों का वर्णन आ गया है। संयोग पक्ष की लीलाओं में वन-विहार ,झूलन ,सुरतान्त-छवि तथा रति का वर्णन मुख्य रूप से किया गया है। रति-वर्णन में कवि ने उचित मर्यादा का पालन किया है। अतः विहार-वर्णन में स्पष्टता की अपेक्षा सांकेतिकता अधिक है :
पौढ़े प्यारी राधिका के संग।
नव किशोर और नव किशोरी गौर श्यामल अंग।।
स्वच्छ सेज सुगन्ध सीतल रत्नजटित पर्यंक।
दशन खण्डित बदन बीरे भरे रति रस-रंग।।
उपजी चतुर्भुजदास दुहूँ दिशि प्रेम सिन्धु तरंग।
रसिकनी अरु रसिक गिरधर मुदित जीत अनंग।।
साभार स्रोत :
- अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय ;डॉ दीनदयाल गुप्त
- ब्रजभाषा के कृष्ण- काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण:हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७
- हिन्दी साहित्य का इतिहास : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
- हिन्दी साहित्य :आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
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