गुरुवार, 1 जून 2017

नन्ददास

By : अशर्फी लाल मिश्र
                                                               अशर्फी लाल मिश्र 

परिचय : 
       नन्ददास की गणना वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख भक्त कवियों में की जाती है। ये गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में वि ० सं ० १५९० में हुआ। (अष्टछाप और वल्लभ :डा ० दीनदयाल गुप्त :पृष्ठ २५६-२६१ ) ये संस्कृत और बृजभाषा के अच्छे विद्वान थे। भागवत की रासपंचाध्यायी का भाषानुवाद इस बात की पुष्टि करता है। वैषणवों की वार्ता से पता चलता है कि ये रसिक किन्तु दृढ़ संकल्प से युक्त थे। एक बार ये द्वारका की यात्रा पर गए और वहाँ से लौटते समय ये एक क्षत्राणी के रूप पर मोहित हो गये। लोक निन्दा की तनिक भी परवाह न करके ये नित्य  उसके दर्शनों के लिए जाते थे। एक दिन उसी क्षत्राणी के पीछे-पीछे आप गोकुल पहुँचे। इसी बीच वि ० सं ० १६१६ में आपने गोस्वामी विट्ठलनाथ दीक्षा ग्रहण की और तदुपरान्त वहीं रहने लगे। डा०  दीनदयाल गुप्त के अनुसार इनका मृत्यु-संवत १६३९ है।
        वार्ता  के अनुसार नन्ददास गोस्वामी तुलसीदास के छोटे भाई थे। विद्वानों के अनुसार वार्ताएं बहुत बाद में लिखी गई हैं। ( हिन्दी साहित्य का इतिहास :आचार्य रामचन्द्र शुक्ल :पृष्ठ १७४ ) अतः इनके आधार पर सर्वसम्मत निर्णय नहीं हो  सकता। पर इतना निश्चित है कि जिस समय  वार्ताएं लिखी गई होंगी  उस समय यह जनश्रुति रही होगी कि नन्ददास तुलसीदास  भाई हैं चाहे चचेरे हों ( हिन्दी साहित्य :डा ० हजारी प्रसाद द्विवेदी :पृष्ठ१८८ )या गुरुभाई ( हिन्दी सा० का इति० :रामचंद्र शुक्ल :पृष्ठ १२४ ) बहुत प्रचलित रही होगी।

रचनाएँ :
  • रास पंचाध्यायी 
  • सिद्धान्त पंचाध्यायी 
  • अनेकार्थ मंजरी 
  • मान मंजरी 
  • रूप मंजरी 
  • रस मंजरी 
  • विरह मंजरी 
  • भँवर गीत 
  • गोवर्धन लीला 
  • स्याम  सगाई 
  • रुक्मिणी मंगल 
  • सुदामा चरित 
  • भाषा दशमस्कन्ध 
  • पदावली 
माधुर्य भक्ति :
          नन्ददास के   कृष्ण सर्वात्मा हैं ,सब  एक मात्र गति हैं अतः प्रत्येक व्यक्ति उन्हीं से प्रेम सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है। यह  वही ब्रह्म है जिसके विषय में वेद नेति नेति   कहते हैं और इस प्रकार उन्हें अगम बताने की चेष्टा करते हैं। परन्तु इनकी विशेषतः यह है कि यह अगम होते हुए भी प्रेम से सुगम हैं:
                        जदपि अगम ते अगम अति ,निगम कहत है जाहि। 
                       तदपि   रंगीले  प्रेम  ते,  निपट  निकट  प्रभु  आहि।।  (रूप मंजरी :पद ५१४ )
          इसीलिए कवि इनकी अगम,अनादि,अनन्त ,अबोध आदि नकार अथच नीरस शब्दों में स्तुति नहीं करता ,वरन उसके लिए कृष्ण सुन्दर आनन्दघन ,रसमय ,रसकारण और स्वयं रसिक हैं। ऐसे ही कृष्ण उसके आराध्य हैं और उसकी प्रेमाभक्ति के आलम्बन हैं। राधा इन्हीं रसमय कृष्ण की प्रिया हैं। कवि के शब्दों में ~~ 
                        
                        दूलह गिरधर लाल छबीलो दुलहिन राधा गोरी। 
                        जिन देखी मन में अति लाजी ऐसी बनी यह जोड़ी।।(पदावली :पद ६० )
          राधा और कृष्ण एकान्त में ही स्वयं दूल्हा-दुलहिन नहीं  हैं। नन्ददास ने स्याम सगाई नामक ग्रन्थ में वर-वधू दोनों पक्षों की सम्मति दिखाकर राधा के साथ कृष्ण की सगाई कराई है। सगाई के बाद जो उत्सव की धूम हिन्दू घरों की एक विशेषता  है ,उसका भी सुन्दर परिचय  कवि ने दिया है ~~ 
                       सुनत  सगाई  श्याम ग्वाल सब अंगनि फूले,
                       नाचत   गावत   चले,  प्रेम  रस  में  अनुकूले। 
                       जसुमति रानी घर सज्यो ,मोतिन चौक पुराइ,
                       बजति  बधाई  नन्द  के  नन्ददास  बलि जाइ।। (स्याम सगाई :पृष्ठ २७ )
          राधा के अतिरिक्त कृष्ण अपने सौन्दर्य और रसिकता के कारण गोपियों के भी प्रियतम बन जाते हैं। श्यामसुन्दर के सुन्दर मुख को देखकर वे मुग्ध हो जाती हैं और कभी-कभी सतत दर्शनों में बाधा -रूप अपनी पलकों को कोसती हैं ~~~ 
                       देखन दे मेरी बैरन पलकें। 
                       नंदनंदन  मुख  तें  आलि बीच  परत  मानों बज्र  की  सल्काइन।।
                       बन   तें  आवत  बेनु   बजावत  गो -रज  मंडित  राजत   अलकैं। 
                       कानन कुंडल चलत अंगुरि दल ललित कपोलन में कछु झलकें।।
                       ऐसी  मुख `निरखन  को   आली  कौन  रची बिच पूत कमल कैं। 
                       'नन्ददास 'सब जड़न की इहि गति मीन मरत भायें नहिं जलकेँ।।(नन्ददास ग्रन्थावली :सं ० ब्रजरत्नदास :पदावली ७९ )

           सभी गोपियों का कृष्ण-चरणों में अनन्य प्रेम है। श्रीकृष्ण के लिए उन्होंने लोक-लाज ,कुल-मर्यादा  सभी का परित्याग कर दिया है। श्रीकृष्ण ही उनके सर्वस्व हैं। उन्हीं की प्रसन्नता के  लिए वे सब कुछ करती हैं और उसके फलस्वरूप उन्हें किसी वस्तु की चाह नहीं है। इसीलिए 'भँवर गीत ; के आरम्भ में उनका   परिचय  देते हुए नन्ददास ने कहा है :  
                      ऊधौ    को     उपदेश   सुनो      ब्रज-नागरी। 
                      रूप,  सील ,  लावन्य     सबै   गुन   आगरी।।
                      प्रेम-धुजा ,रस-रूपिनी ,उपजावनि  सुख पुंज। 
                      सुन्दर स्याम-विलासिनी ,नव वृन्दावन कुंज।। (भँवरगीत :पद १ )
         निजी सुख की कामना के आभाव के कारण गोपियों का प्रेम नितान्त शुद्ध है। उनके इस प्रेम का   परिचय हमें तब मिलता है जब उद्धव से कृष्ण का नाम सुनते ही उनकी आँखों में अश्रु बहने लगते हैं ,उनका कंठ अवरुद्ध हो जाता हैऔर उन्हें रोमांच हो जाता है :
                       सुनत स्याम को नाम बाम गृह की सुधि भूली। 
                       भरि  आनन्द रस  ह्रदय  प्रेम बेली द्रुम फूली।।
                       पुलक रोम सब अंग भये भरि आये जल नैन।       
                       कंठ   घुटे गदगद  गिरा  बोल्यो  जात न बैन।।(भँवरगीत :पद ३ )
          गोपी-कृष्ण की संयोग पक्ष की मधुर-लीलाओं में नन्ददास ने मुख्य रूप से दान-लीला ,रास-लीला ,झूलन,फ़ाग और विहार का वर्णन किया है। इस वर्णन में उनकी कवित्व शक्ति का अच्छा परिचय मिल जाता है। रास के इस वर्णन में गोप-युवतियों और कृष्ण की रूप-छवि का अत्यधिक सरस् और प्रांजल भाषा में वर्णन किया है :
                    खेलत रास रसिक रस-सागर। 
                     मंडित  नव   नागरी  निकर  बर  परम  रूप  को आगर।।
                     विकच  बदन  बनिता  बृंद अतिसै अमल  सरद  राजत। 
                    राका   सुभग  सरोवर   में  जस  फूले   कमल विराजत।।
                    नवकिसोर  सुन्दर साँवर अंग बलित ललित ब्रजबाला। 
                    मानों  कंचन   खचित  नील मनि  मंजुल पहिरी माला।।
                    या  छवि   की   उपमा   कहिबे   को  ऐसो कौन पढ्यो है। 
                    'नन्ददास 'प्रभु को कौतुक लखि कामहि काम बढ्यो है।(पदावली ;पद १२० )
        
साभार स्रोत :

  • हिन्दी साहित्य :डा ० हजारी प्रसाद द्विवेदी 
  • हिन्दी सा० का इति० :रामचंद्र शुक्ल
  • ब्रजभाषा के कृष्ण- काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण:हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७ 
  • अष्टछाप और वल्लभ :डा ० दीनदयाल गुप्त 
  • नन्ददास ग्रन्थावली :सं ० ब्रजरत्नदास
  • भँवर गीत 
  • रूप मंजरी 



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