रविवार, 5 नवंबर 2017

जन प्रतिनिधियों की निर्धारित हो न्यूनतम अर्हता


Asharfi Lal Mishra










Updated on 29/09/2018
समाज सेवा लोगों की  भलाई के निमित्त ,त्याग एवं परोपकार की भावना से  किया गया   कार्य है।  इस कार्य के  बदले में कुछ भी  वापस पाने की इच्छा नहीं की जाती। एक समाज सेवक के लिए जरूरी है  कि  उसे पर पीड़ा का अनुभव हो। उसके ह्रदय में सदैव

                              परहित सरिस धरम नहिं भाई 

 का भाव उद्वेलित होना चाहिए। 

लोकतन्त्र  में समाज सेवकों का विशेष महत्व है  क्योंकि यही समाज सेवा करने वाले व्यक्ति जनता द्वारा निर्वाचित  होकर     विधान सभा , लोक सभा आदि में  जनता के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचते हैं। यही नहीं ये जन प्रतिनिधि  विधान मण्डल /संसद  में  कानून  की  रचना  एवं  संविधान संशोधन तक में योगदान  करते हैं। 

 चूँकि जन प्रतिनिधि का काम समाज सेवा के अतिरिक्त कानून  का निर्माण भी है ऐसी सूरत में  कम शिक्षित या फिर अपढ़ व्यक्ति उस कानून की बारीकियों को कैसे समझ सकते हैं । यही जन प्रतिनिधि मंत्री,मुख्य मंत्री एवं प्रधान मंत्री के पद पर आसीन होते हैं।  कभी -कभी तो बिना किसी अनुभव के सीधे ही मुख्य मंत्री या प्रधान मंत्री की कुर्सी पर आसीन हो जाते हैं। ऐसी सूरत में  नौकरशाही की  इच्छा  पर ही प्रशासन  चलता है जो लोकतंत्र की भावना के विपरीत है। 

प्रशासन  पर नियन्त्रण 
 लोकतंत्र में  मंत्री,मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री के साथ साथ  जिले में  सांसदों /विधायकों  का भी  स्थान लोक सेवकों से ऊँचा है। हमारा कहने का आशय यह है कि सरकार के  सक्षम जन प्रतिनिधि  ही  अपने विभाग पर नियंत्रण  कर सकते हैं।  

अर्हता  की आवश्यकता 

(१) शैक्षिक 
 चूँकि  यह जन प्रतिनिधि संसद / विधान मण्डल  में  कानून का निर्माण करते हैं. ऐसी सूरत में  इनके  लिए जरूरी है कि  वे कम से कम स्नातक  की उपाधि  प्राप्त हों जिससे वे कानून की  भाषा और उसकी बारीकियों से अवगत  हो जायँ। प्रायः संसद और विधान मंडल  की  कार्यवाही (TV) देखने से प्रतीत होता है कि  किसी अधिनयम  में  संशोधन  या फिर  किसी  अधिनियम  के निर्माण के अवसर पर  अधिकांश प्रतिनिधि  मूक दर्शक रह कर  मेजें  थप- थपा कर उसका  समर्थन  करते हैं या  फिर  अनुचित तरीके से विरोध व्यक्त करते हैं।  कभी -कभी यह भी देखने पर आता है कि  प्रतिनिधि  विषय वस्तु  से हट कर भी तर्क प्रस्तुत करते हैं। 
(२) समाज सेवा 
 समाज सेवा करना  जन प्रतिनिधियों का मुख्य उद्देश्य  निर्धारित है। इन जन प्रतिनिधियों के लिए  समाज सेवा  विषय के साथ चार वर्षीय बी टेक (Social Work ) की उपाधि भी निर्धारित की जानी  चाहिए।  इसमें पाठ्य क्रम ऐसा हो कि जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में  फील्ड का प्रैक्टिकल वर्क ६०%   अनिवार्य हो। कई  प्रतिनिधि ऐसे होते जो सीधे थोप दिए जाते हैं ऐसे प्रतिनिधि मंत्री भी बनने में सफल हो जाते है लेकिन इन मंत्रियों /प्रतिनिधियों ने  जनता की व्यावहारिक ,सामाजिक ,शैक्षिक ,आर्थिक कठिनाइयों का कभी भी प्रत्यक्ष  अनुभव नहीं किया। 
 एक मीटिंग के अवसर पर जब एक प्रतिष्ठित सांसद  से  यह पूंछा गया कि हमारे आलू सड़ रहे हैं। सांसद ने  उत्तर दिया कि आप लोग आलू की फैक्ट्री लगाइये। यह सांसद किसानों की समस्या से अनभिज्ञ थे इस लिए ऐसा उत्तर दिया। एक अन्य विशिष्ठ प्रतिनिधि ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा था आप लोग शकर बोइये। ये दोनों ही उत्तर  उन  जन प्रतिनिधियों के थे जो बिना सामाजिक  कार्य किये ही ऊपर से थोप दिए गए थे।

हरियाणा सरकार  ने सांसदों /विधयकों की  न्यूनतम  शैक्षिक अर्हता   निर्धारित करने   के लिए  केंद्र  सरकार को पत्र लिखा है [a]

लोकतंत्र में बढ़ता सत्ता का आकर्षण

 आज लोकतंत्र में सत्ता प्राप्ति की अभिरुचि सभी लोगों में है। चाहे वे लोक सेवक के रूप में  उच्च पद पर आसीन रहे हों,उद्योपति  हों , फिल्म अभिनेता हों या फिर खेल जगत से सम्बंधित हों। प्रायः देखने में आता है  कि फिल्म अभिनेता भीड़  जुटाने में अधिक सफल रहते है. और केवल  जन प्रतिनिध  बनने में ही सफल  नहीं होते बल्कि सत्ता पर काबिज होते देखे गए। भारत का तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहाँ अभिनेता से राजनेता बनकर  कई दशक तक राज्य के शासन की बागडोर सम्हाली गई । ऐसे राजनेता अर्थ की धमक से सत्ता पर काबिज हो जाते हैं उन्हें  समाजसेवा करने का  न  कोई  जमीनी  अनुभव और न अनुभूति। हाँ इतना अवश्य है ऐसे  लोग समाज सेवा के लिए भारत रत्न का पुरस्कार अवश्य मांग करते देखे गए । 

महिला जनप्रतिनिधि : अधिकांश महिलायें किसी  लोक सेवक के पद  से त्याग पत्र  /अवकाश प्राप्त  के पश्चात्  या राजनीतिक पृष्ठ भूमि के परिवारों से सम्बद्ध ही  सीधे सक्रिय राजनीति में प्रवेश करती हैं।

आज  जन प्रतिनिधि के लिए समाज सेवा आवश्यक नहीं है। हाँ धन बल चाहिए और इस बल से  समाज सेवक होने का प्रमाण पत्र प्राप्त भी हो जाता है।

पंचायतों में अनिवार्य योग्यता 
 राजस्थान और हरियाणा  की पंचायतों में चुनाव लड़ने वालों ले लिए अनिवार्य योग्यता है। अन्य राज्यों में भी पंचायतों में अनिवार्य योग्यता  का निर्धारण  करने के लिए केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी  ने प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को पत्र  लिखने की बात कही [1] . उत्तराखंड में सरकार ने पंचायत के चुनाव में उम्मीदवारों के लिए  न्यूनतम अर्हता निर्धारित करने के लिए निश्चय किया। योग्यता का निर्धारण ग्राम पंचायत ,क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत के सभी पदों के लिए होगा। 1(a)

अभिमत 
(१) सत्ता पर अच्छी पकड़ और  कानून के अच्छे ज्ञान के लिए जन प्रतिनिधि (सांसद /विधायक ) के लिए न्यूनतम शैक्षिक अर्हता  स्नातक होनी चाहिए एवं
(२) जनता की वास्तविक  समस्याओं  की अनुभूति के लिए  समाज कार्य ( Social Work ) में  दो वर्षीय  डिप्लोमा पाठ्य क्रम
अथवा
१०+२  के पश्चात् सोशल वर्क में चार वर्षीय बी टेक  की  उपाधि।

 हमारा उक्त अर्हता सम्बन्धी विचार केवल समाज सेवा में नवीन पदार्पण करने वाले लोगों के निमित्त है। इससे केवल समाज सेवा के  वास्तविक एवं इच्छुक व्यक्ति ही  राजनीति  की ओर अग्रसर होंगे और धन बल के आधार पर  लोगों का  सीधे राजनीति में प्रवेश पर अंकुश लगेगा।

जब पंचायत प्रतिनिधियों के लिए योग्यता का निर्धारण हो सकता है तो सांसदों/विधायकों के लिए क्यों नहीं।




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