गुरुवार, 23 नवंबर 2017

शिक्षा का गिरता स्तर चिन्तनीय



Asharfi Lal Mishra











Updated on 11/08/2018
प्राचीन काल  से ही भारत में शिक्षा का विशेष महत्व रहा है। विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय  तक्षशिला  में स्थापित किया गया था। चौथी शताब्दी में में नालंदा विश्वविद्यालय की गणना विश्व के श्रेठ विश्वविद्यालयों में थी। कहा जाता है कि  उस समय नालंदा विश्वविद्यालय में १०,००० विद्यार्थी और २०००  शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय में चरक और सुश्रुत ,आर्यभट्ट ,भाष्कराचार्य,चाणक्य,पतञ्जलि ,वात्स्यायन जैसे उद्भट विद्वान शिक्षक थे।

 इस विश्वविद्यालय ने अपनी राष्ट्रीय और जातीय सीमाओं को तोड़ते हुए चीन,जापान,कोरिया,इंडोनेशिया ,फारस,तुर्की आदि देशों के छात्रों और विद्वानों को आकर्षित किया। यहाँ विज्ञान ,खगोलविज्ञान, गणित ,चिकित्सा ,भौतिक विज्ञान ,रसायन विज्ञान, इंजीनियरिंग के साथ-साथ वेद,दर्शन,सांख्य,योग, तर्क , बौद्ध दर्शन के साथ विदेशी दर्शन की शिक्षा दी जाती थी।

स्वतंत्रता के पूर्व शिक्षा सर्व सुलभ नहीं थी। आजादी के बाद राष्ट्र प्रेमियों, शिक्षा अनुरागियों में विद्यालय खोलने की एक होड़ सी लग गई। परिणाम स्वरुप देश के हर कस्बे में  विद्यालय खुले। छात्र अनुशासित और शिक्षक कर्मठ एवं लगनशील थे। विद्यालय /महाविद्यालय राजनीति से परे थे। परीक्षाओं में नकल का कोई स्थान नहीं था।

वर्ष १९७० के बाद यदा -कदा हल्के फुल्के नकल के प्रकरण दिखाई  पड़ते थे। १९८०-१९९० के दशक में नकल की हवा बहने लगी।

 वर्ष १९८७ में  शिक्षा ने एक घटिया उद्योग का रूप ले लिया। शिक्षा विभाग ने सवित्त मान्यता  के स्थान पर माध्यमिक तक वित्तविहीन और उच्च शिक्षा में स्ववित्त पोषित मान्यताओं का दरवाजा खोल दिया। शिक्षा के इस उद्योग में लगभग प्रत्येक जनप्रतिनिधि भी कूद पड़े। इससे विद्यालयों   के  लिए   निर्धारित  मानदण्ड  तार-तार  गए।

 विद्यालयों,  महाविद्यालयों के साथ -साथ प्राथमिक शिक्षा में भी  शिक्षण,परीक्षण ,निरीक्षण  अनुशासन  एक आदर्श वाक्य तक सीमित हो गए। बोर्ड /विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में ठेके उठने लगे। परीक्षा केंद्रों  , प्राइवेट छात्रों के पंजीकरण केंद्रों एवं मूल्याङ्कन केंद्रों एवं परीक्षा केंद्रों  में छात्र आबंटन हेतु   जिला विद्यालय निरीक्षक के यहाँ  रेट निर्धारित होने लगे।

वर्ष १९९५ में उत्तर प्रदेश के मुख्य   मंत्री  कल्याण सिंह ने नकल अध्यादेश लागू करने  के साथ-साथ स्वकेन्द्र  की व्यवस्था समाप्त कर दी इससे नकल तो रुकी। लेकिन युवा मन की कमजोरी को देखकर  आगामी चुनाव के पूर्व मुलायम सिंह यादव ने  नकल अध्यादेश  समाप्त करने एवं स्वकेन्द्र प्रणाली लागू करने की घोषणा कर दी। बस  यहीं से उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था  गर्त में चली गई। यही स्थति बिहार ,महाराष्ट्र आदि प्रांतों में भी हो गई।

अब स्थिति यह हो गई है कि  प्रदेश में मेरिट के लिए बोली प्रारम्भ हो गई। विश्वविद्यालयों ने उपाधियाँ भी बेचनी शुरू दी। पी-एच डी  की थीसिस भी अन्य के द्वारा लिखी जाने लगीं। अवैध प्रवेश भी शिक्षा उद्योग की एक कड़ी है [1]
 आज युवक अपनी उपाधियाँ लेकर बीच सड़क में या तो उन्हें फाड् रहे हैं या फिर उन्हें जला  कर  अपना आक्रोश जाहिर कर रहे हैं

डुप्लीकेट प्रोफेसर 

आज उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विशेषकर स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में एक प्रोफ़ेसर चार -चार कॉलेजों में  अपनी सेवाएं दे रहे हैं या फिर अपने  प्रमाण पत्र इन संस्थाओं में जमा कर वेतन ले रहे हैं। देश में ८० हजार  प्रोफ़ेसर  एक से अधिक स्थानों में काम करते पाए गए हैं। [2] [3]

 देश में शिक्षा उद्योग तो पनपा परन्तु  उत्पादन घटिया।  .आज  देश में  स्नातकों ( टेक्निकल  ,चिकित्सा,कानून ,प्रबन्धन,शिक्षा आदि   )की एक लम्बी लाइन है। उनकी न तो अपने देश में और न ही कहीं विदेश  में  पूंछ है।

सरकार के प्रयास 

शिक्षा के क्षेत्र में जो भी प्रयास हो रहे हैं वे  पाठ्यक्रम में संशोधन तक सीमित है  .केन्द्रीय विद्यालयों में स्मार्ट क्लासेज की व्यवस्था हो रही है। केंद्रीय विद्यालय सहित सीबीएसई तथा अन्य बोर्डों (केंद्र व् राज्य ) से मान्यता प्राप्त विद्यालय योग्य शिक्षकों और संसाधन की कमी से जूझ रहे हैं।


बुधवार, 22 नवंबर 2017

नई शिक्षा नीति 2016 : एक दृष्टि

Blogger : Asharfi Lal Mishra
Asharfi Lal Mishra










Updated on 25/12/2017
 भारत ने सदैव से शिक्षा को विशेष महत्व दिया है। विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय  भारत में 700 ई०  पू० तक्षशिला  में स्थापित किया गया  था।  चौथी शताब्दी  में स्थापित  नालंदा विश्वविद्यालय की गणना विश्व के श्रेष्ठ  विश्वविद्यालयों  में थी। कहा जाता है  कि 7 वीं  शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय में 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय में  चरक औरसुश्रुत,आर्यभट्ट,भास्कराचार्य,चाणक्य,पतंजलि,वात्स्यायन आदि जैसे विद्वान शिक्षक थे।

         विज्ञान,गणित,खगोलविज्ञान,चिकित्सा,रसायनविज्ञान,भौतिक विज्ञान ,इंजीनियरिंग  के साथ -साथ वेद ,दर्शन , सांख्य ,योग ,बौद्ध एवं  विदेशी दर्शन व तर्कशास्त्र के अध्ययन की  विशेष  व्यवस्था थी।  नालंदा विश्वविद्यालय ने  अपनी राष्ट्रीय और जातीय सीमाओं को तोड़ते हुए चीन,जापान,कोरिया ,इंडोनेशिया ,फारस,तुर्की आदि देशों के विद्वानों और छात्रों को अपनी ओर आकर्षित किया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हर सरकार ने शिक्षा को एक प्रयोगस्थल के रूप में लिया। पाठ्यक्रम बदलते रहे ,स्कूल खुलते चले गए परन्तु शिक्षा की गुणवत्ता पर किसी ध्यान ही नहीं गया। शिक्षकों के वेतन बढ़ते गए ,छात्र पंजीकृत होते रहे। देश में शिक्षित लोगों  का प्रतिशत बढ़ता चला गया। पास होने के लिए ,नक़ल करने  के लिए बोली लगने लगी। 
  
 राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा की अत्यंत  दुर्गति  देखकर  शिक्षक संघों की सशक्त आवाज  पर वर्ष 1976  में  शिक्षा को समवर्ती सूची  में लाया गया। इससे यह कल्पना की गई कि  राज्य और केंद्र दोनों सरकारें मिलकर शिक्षा की हो रही बदहाल स्थिति से निजात मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शिक्षा के समवर्ती सूची में होते ही केंद्र ने राज्य सरकारों को अपने हिस्से का धन आवंटित कर देना केवल अपना कर्तव्य समझ लिया। इससे राज्य पर शिक्षा के धन का  बोझ तो कम  हो  गया लेकिन शिक्षा में कोई  गुणात्मक सुधार नहीं हुआ।   
1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई। इसमें में पाठ्यक्रम ,परीक्षा प्रणाली में  बदलाव और  माध्यमिक शिक्षा तक राज्य की जिम्मेदारी से बचने के मुख्य बिंदु थे। परिणाम  स्वरुप कुछ राज्यों (मध्य प्रदेश ) में  शिक्षकों के  दो काडर हो गए। प्रशासन भी दोहरा।  उत्तर प्रदेश राज्य में  माध्यमिक परीक्षाओं में होने वाली नक़ल को इस नई  परीक्षा प्रणाली में मानों पंख लग गए । 1987 से वित्त विहीन विद्यालयों  की एक  लम्बी श्रंखला खड़ी  हो गई।  उत्तर प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा की परीक्षाओं पर नक़ल माफियाओं का आधिपत्य  हो गया।  अब शिक्षा के क्षेत्र में काला  युग प्रारम्भ हो गया।  शिक्षा देने वाले विद्यालय परीक्षाफल  में पिछड़ने लगे और केवल पंजीकृत विद्यालय रिजल्ट में अग्रगणी हो गए। जो स्थिति  माध्यमिक  विद्यालयों की थी ठीक उसी के अनुरूप  प्राथमिक और उच्च शिक्षा की भी  थी। 
        वर्ष 1995 में माध्यमिक और विश्ववद्यालय की परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह   ने नक़ल  अध्यादेश के साथ स्वकेंद्र व्यवस्था को समाप्त कर  नकल रोकने अचूक अस्त्र चलाया और नक़ल रुकी भी परन्तु  मुलायम सिंह ने अगले चुनाव से पूर्व नकल अध्यादेश और स्वकेंद्र समाप्त  करने का सन्देश युवा पीढ़ी को दिया। इसके कारण पढ़ाई की जो गति थी वह भी ठप्प  गई और युवा मन केवल किसी प्रकार प्रमाण पत्र पाने  की दिशा की ओर अग्रसर हो चले।

                                             राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2016  पर संक्षिप्त  टिपण्णी 

                                                             पूर्व प्राथमिक शिक्षा 

नई शिक्षा नीति 2016  के परिपेक्ष्य में  : आंगनबाड़ी केंद्रों  को प्राथमिक विद्यालयों के परिसर में अथवा उसके निकट संचालित किया जायेगा जहाँ  पर 4-5  आयु वर्ग के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था होगी  और इसके  बाद  इन छात्रों का प्रवेश   प्राथमिक विद्यालयों में होगा। 

 वर्तमान स्थिति : अधिकांश  केंद्र  कागजों पर संचालित हैं। फर्जी पंजीकरण के आधार पर  पौष्टिक आहार उठाया जाता है। इन केन्द्रो का निरीक्षण  या   तो होता ही नहीं या फिर कागजों पर। 

प्रश्न :   पूर्व प्राथमिक शिक्षा  कैसे संचालित होगी ?

                                                                   प्राथमिक शिक्षा 

  •  प्राथमिक शिक्षा में छात्रों को फेल न करने की नीति होगी। 
  • शिक्षण का माध्यम मातृभाषा /क्षेत्रीय भाषा। 
  •  अंग्रेजी अनिवार्य। 
  • कम नामांकन वाले विद्यालयों को समेकित करना।
  • मिड डे मील का पर्यवेक्षण शिक्षकों पर नहीं होगा।  

वर्तमान स्थिति : 
  • शिक्षक उपस्थित होते हैं परन्तु समयनिष्ठा  का अभाव । 
  • दूरस्थ विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थित चिंताजनक। 
  • निरीक्षण प्रणाली कमजोर। 
  • NPRC की भूमिका केवल विभागीय सूचनाओं का आदान प्रदान करना । 
  • प्रधानाध्यापक मिड डे मील का रिकॉर्ड कीपर। प्रबंधक। 
  • छात्रों का फर्जी पंजीकरण 
  • मान्यता रहित विद्यालयों का समान्तर सञ्चालन। 
  • छात्रों की उपस्थिति चिंताजनक। 
  • छात्रों को समय पर भेजने में अभिभावकों में जागरूकता  अभाव। 
प्रश्न : 
  • छात्रों और शिक्षकों में समयनिष्ठा (Punctuality) कैसे उत्पन्न होगी?
  • समय पर विद्यालय पहुंचे छात्रों की सुरक्षा की गारण्टी कौन लेगा ?
  • छात्र के अनुपस्थित होने पर शिक्षक /अभिभावक में कौन उत्तर दायी होगा?
  • मान्यरहित विद्यालयों को बंद करने में विभागीय अधिकारी असफल क्यों हैं?
  • छात्रों के फेल न होने की नीति से  गुणात्मक शिक्षा का मूल्याङ्कन कैसे होगा ?
  • क्या विद्यालयों के  समेकन  के पहले मान्यतारहित/मानकविहीन विद्यालयों का  सञ्चालन बंद होगा ?
                                                                उच्च प्राथमिक शिक्षा 
  •  छात्रों के फेल होने की नीति लागू होगी। 
  • सूचना प्रणाली (Information Communication Technology )
  • शिक्षण का माध्यम स्थानीय /क्षेत्रीय भाषा /मातृभाषा , अंग्रेजी अनिवार्य तथा संविधान के अन्तर्गत तीसरी भाषा। 
  • कम  छात्रों वाले विद्यालयों का  समेकन 
  • मिड डे मील का पर्यवेक्षण शिक्षकों पर नहीं होगा। 
वर्तमान स्थिति 
  • शिक्षकों की उपस्थिति परन्तु समय निष्ठा का अभाव। 
  • दूरस्थ विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति चिंताजनक। 
  • निरीक्षण प्रणाली कमजोर। 
  • NPRC की भूमिका ?.
  • प्रधानाध्यापक मिड डे मील प्रबंधक/रिकॉर्ड कीपर। 
  • छात्रों का कम पंजीकरण का मुख्य कारण मान्यतारहित विद्यालयों का सञ्चालन। 
  • छात्रों की उपस्थिति चिंताजनक 
  • अनर्ह शिक्षकों की कोचिंग से छात्रों का ज्ञान अधकचरा एवं कक्षा में छात्र  भ्रमित हो रहे हैं। 
  • लगभग 30 % छात्राएं  पढ़ाई  छोड़ देती हैं [1]

 प्रश्न 

  •  शिक्षकों एवं छात्रों में समयनिष्ठा (Punctuality) का पालन कैसे होगा ?
  • समय पर विद्यालय पहुंचे छात्रों की सुरक्षा की गारण्टी कौन  लेगा ?
  • छात्रों के  अनुपस्थित होने के लिए शिक्षक/अभिभावक में कौन उत्तरदायी होगा?
  • मान्यतारहित विद्यालयों के सञ्चालन  में  विभागीय अधिकारीयों की क्या भूमिका है ?
  • यदि  कक्षा ६ में प्रवेश हुए छात्रों को  हिंदी,अँग्रेजी और गणित का पूर्व न होने पर सूचना विज्ञान (Information Communication Technology ) का  शिक्षण कार्य कैसे होगा ?
  • विद्यालयों के  समेकन के पूर्व क्या मान्यता रहित विद्यालय बंद   होंगे ?
  • क्या अनर्ह शिक्षकों द्वारा कोचिंग चलती रहेगी ?
                                                     माध्यमिक शिक्षा 

  • विज्ञान ,गणित और अँग्रेजी का पाठ्यक्रम  सम्पूर्ण देश में एक समान। 
  • डिजिटल ज्ञान 
  • कक्षा 10 में विज्ञान ,गणित और अंग्रेजी में दो पाठ्यक्रम 
  1. भाग -क  :उच्च स्तर 
  2. भाग-ख  :निम्न स्तर  

  • कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा अनिवार्य होगी। बोर्ड की परीक्षा में कक्षा 10 का समग्र पाठ्यक्रम होगा। 
  • स्थान्तरण प्रमाणपत्र /स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र  को समाप्त करने की व्यवस्था।
  • मिड डे मील का पर्यवेक्षण शिक्षकों पर नहीं।
 वर्तमान स्थिति 
  • राजकीय , स्थानीय निकाय द्वारा संचालित ,सहायता प्राप्त ,वित्त विहीन मान्यताप्राप्त के अतिरिक्त  गैरमान्यताप्राप्त विद्यालय अस्तित्व में। 
  • राजकीय,स्थानीय निकाय संचालित एवं सहायता प्राप्त विद्यालय शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। 
  • निरीक्षण व्यवस्था नहीं के बराबर। 
  • छात्रों और शिक्षकों में  समयनिष्ठा का अभाव 
  • छात्रों के मूल्याङ्कन की कमजोर व्यवस्था 
  • वित्त विहीन विद्यालयों में केवल  छात्रों का फर्जी पंजीकरण 
  • वित्त विहीन विद्यालयों में  अनर्ह शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य 
  • अधिकांश वित्त विहीन विद्यालय नक़ल के  सुदृढ़ केंद्र  
  • विद्यालय के गणित ,विज्ञान ,अंग्रेजी एवं वाणिज्य  के शिक्षकों द्वारा   व्यक्तिगत कोचिंग का दबाव। 
  • केंद्रीय  मूल्याङ्कन में निर्धारित उत्तर पुस्तिकाओं से  अधिक   जांचने पर मूल्यांकन   में  औसत  अंक दिए  हैं. 
 प्रश्न 
  • क्या वित्त विहीन विद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों का भौतिक सत्यापन की कोई व्यवस्था होगी ?
  • बोर्ड परीक्षाओं में नक़ल रोकने के क्या ठोस उपाय होंगे  ?
  • वित्त विहीन विद्यालयों में अनर्ह शिक्षक होने बावजूद भी प्रदेश में मेरिट में स्थान कैसे ?
  • माध्यमिक विद्यालयों में प्रयोगशालाओं के अभाव में प्रैक्टिकल कैसे होते हैं ?
  • क्या मान्यता रहित विद्यालय बंद होंगे?
  • क्या माध्यमिक शिक्षकों पर कोचिंग करने पर प्रतिबन्ध लगेगा?
                                                         उच्च शिक्षा 
  • एक विश्वविद्यालय में अधिकतम 100 कॉलेज सम्बद्ध होंगे। 100 से अधिक होने पर दूसरा विश्वविद्यालय गठित होगा 
  • राष्ट्रीय उच्च शिक्षा अध्येतावृत्ति के प्रबंधन हेतु स्वतंत्र तंत्र की व्यवस्था। 
  • प्रत्येक उच्च शिक्षा संस्थान की एक समर्पित वेबसाइट  अनिवार्य। जिसमें 
  1. संकाय 
  2. प्रवेश शुल्क 
  3. कार्यक्रम 
  4. परीक्षा परिणाम 
  5. प्लेसमेंट 
  6. शासन 
  7. वित्त बिज़नेस टाई -उप 
  8. प्रबंधन आदि पारदर्शी विधि से सूचनाएँ 
  •  नवीन शैक्षणिक पदों पर  नियुक्ति के पूर्व राष्ट्रीय या राज्य प्रशिक्षण अकादमी से 3-6 मास  प्रशिक्षण अनिवार्य। 
                                     वर्तमान स्थिति 
  • राजकीय एवं सहायता प्राप्त विद्यालय शिक्षकों की कमी का कर रहे सामना। 
  • स्ववित्त पोषित कॉलेज केवल छात्र पंजीकरण के केंद्र। 
  • स्ववित्त पोषित कॉलेज/ निजी यूनिवर्सिटी /डीम्ड में अनर्ह शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य भी। 
  • स्ववित्त पोषित कॉलेजों  में उठते नकल के ठेके।
  • एक  ही शिक्षक का नाम कई स्ववित्त पोषित कॉलेजों में। 
  • उपाधियाँ भी खरीदी जा रहीं। 
  • छात्रों पर कोचिंग का रहता दबाव। 

प्रश्न 
  • क्या स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में छात्रों और शिक्षकों का भौतिक सत्यापन होगा ?
  • क्या स्ववित्त महाविद्यालय अपने कॉलेज की वेबसाइट पर पारदर्शी ढंग से  शिक्षकों सहित सम्पूर्ण वांछित विवरण अपलोड करेंगे ?
  • केंद्रीय मूल्याङ्कन में  एक दिन में  निर्धारित उत्तर पुस्तिकाओं से अधिक  उत्तर पुस्तिकाएं क्यों आवंटित की जाती हैं। 
                                                             कुछ सार्थक प्रयासों  की शुरुआत 
  • नई शिक्षा नीति २०१६ में शिक्षा पर  दुगुने धन की व्यवस्था 
  • शिक्षकों की नियुक्ति में गुणात्मक पहलू पर जोर 
  • अयोग्य शिक्षकों की छटनी 
  • परीक्षा केंद्रों के निर्धारण में  कुछ सुचिता का प्रयास 
                                                          कुछ अनछुए पहलू  
  • मान्यतारहित विद्यालय /मानक विहीन विद्यालय  शिक्षा  के ब्लैक स्पॉट 
  • अनर्ह शिक्षकों द्वारा कोचिंग 
  • पंजीकृत/अपंजीकृत  कोचिंग की समय सारिणी एवं शिक्षकों की योग्यता का निरीक्षण
  • शिक्षकों के कार्य स्थल से आवास की दूरी अधिक होना 
  • अधिकांश शिक्षक अपने बच्चों को  अपने स्कूल/बोर्ड/कॉलेज में प्रवेश नहीं दिलाते।  
अभिमत 
            हमारा अभिमत है   कि  जब तक  विभाग की निरीक्षण प्रणाली  भ्रष्ट रहेगी तब तक  शिक्षा में किसी बदलाव की कल्पना कठिन है।  जब तक अनर्ह शिक्षकों  एवं मान्यता रहित विद्यालयों  / मानक विहीन विद्यालयों को प्रतिबन्धित नहीं किया जाता तब तक शिक्षा में बदलाव एक दिवा स्वप्न होगा। जब  तक महाविद्यालयों में  बिना प्रयोगशालाओं  के  अनर्ह शिक्षक  शिक्षण कार्य करेंगे  तब तक  ये महाविद्यालय केवल  एक पंजीकरण केंद्र ही रहेंगे   और छात्रों की उपाधियाँ मात्र एक कागज का टुकड़ा होंगी। अनर्ह शिक्षकों  द्वारा कोचिंग से छात्र कक्षा में भ्रमित होते हैं और उनका भविष्य चौपट हो जाता हैं
। 

रविवार, 5 नवंबर 2017

जन प्रतिनिधियों की निर्धारित हो न्यूनतम अर्हता


Asharfi Lal Mishra










Updated on 29/09/2018
समाज सेवा लोगों की  भलाई के निमित्त ,त्याग एवं परोपकार की भावना से  किया गया   कार्य है।  इस कार्य के  बदले में कुछ भी  वापस पाने की इच्छा नहीं की जाती। एक समाज सेवक के लिए जरूरी है  कि  उसे पर पीड़ा का अनुभव हो। उसके ह्रदय में सदैव

                              परहित सरिस धरम नहिं भाई 

 का भाव उद्वेलित होना चाहिए। 

लोकतन्त्र  में समाज सेवकों का विशेष महत्व है  क्योंकि यही समाज सेवा करने वाले व्यक्ति जनता द्वारा निर्वाचित  होकर     विधान सभा , लोक सभा आदि में  जनता के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचते हैं। यही नहीं ये जन प्रतिनिधि  विधान मण्डल /संसद  में  कानून  की  रचना  एवं  संविधान संशोधन तक में योगदान  करते हैं। 

 चूँकि जन प्रतिनिधि का काम समाज सेवा के अतिरिक्त कानून  का निर्माण भी है ऐसी सूरत में  कम शिक्षित या फिर अपढ़ व्यक्ति उस कानून की बारीकियों को कैसे समझ सकते हैं । यही जन प्रतिनिधि मंत्री,मुख्य मंत्री एवं प्रधान मंत्री के पद पर आसीन होते हैं।  कभी -कभी तो बिना किसी अनुभव के सीधे ही मुख्य मंत्री या प्रधान मंत्री की कुर्सी पर आसीन हो जाते हैं। ऐसी सूरत में  नौकरशाही की  इच्छा  पर ही प्रशासन  चलता है जो लोकतंत्र की भावना के विपरीत है। 

प्रशासन  पर नियन्त्रण 
 लोकतंत्र में  मंत्री,मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री के साथ साथ  जिले में  सांसदों /विधायकों  का भी  स्थान लोक सेवकों से ऊँचा है। हमारा कहने का आशय यह है कि सरकार के  सक्षम जन प्रतिनिधि  ही  अपने विभाग पर नियंत्रण  कर सकते हैं।  

अर्हता  की आवश्यकता 

(१) शैक्षिक 
 चूँकि  यह जन प्रतिनिधि संसद / विधान मण्डल  में  कानून का निर्माण करते हैं. ऐसी सूरत में  इनके  लिए जरूरी है कि  वे कम से कम स्नातक  की उपाधि  प्राप्त हों जिससे वे कानून की  भाषा और उसकी बारीकियों से अवगत  हो जायँ। प्रायः संसद और विधान मंडल  की  कार्यवाही (TV) देखने से प्रतीत होता है कि  किसी अधिनयम  में  संशोधन  या फिर  किसी  अधिनियम  के निर्माण के अवसर पर  अधिकांश प्रतिनिधि  मूक दर्शक रह कर  मेजें  थप- थपा कर उसका  समर्थन  करते हैं या  फिर  अनुचित तरीके से विरोध व्यक्त करते हैं।  कभी -कभी यह भी देखने पर आता है कि  प्रतिनिधि  विषय वस्तु  से हट कर भी तर्क प्रस्तुत करते हैं। 
(२) समाज सेवा 
 समाज सेवा करना  जन प्रतिनिधियों का मुख्य उद्देश्य  निर्धारित है। इन जन प्रतिनिधियों के लिए  समाज सेवा  विषय के साथ चार वर्षीय बी टेक (Social Work ) की उपाधि भी निर्धारित की जानी  चाहिए।  इसमें पाठ्य क्रम ऐसा हो कि जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में  फील्ड का प्रैक्टिकल वर्क ६०%   अनिवार्य हो। कई  प्रतिनिधि ऐसे होते जो सीधे थोप दिए जाते हैं ऐसे प्रतिनिधि मंत्री भी बनने में सफल हो जाते है लेकिन इन मंत्रियों /प्रतिनिधियों ने  जनता की व्यावहारिक ,सामाजिक ,शैक्षिक ,आर्थिक कठिनाइयों का कभी भी प्रत्यक्ष  अनुभव नहीं किया। 
 एक मीटिंग के अवसर पर जब एक प्रतिष्ठित सांसद  से  यह पूंछा गया कि हमारे आलू सड़ रहे हैं। सांसद ने  उत्तर दिया कि आप लोग आलू की फैक्ट्री लगाइये। यह सांसद किसानों की समस्या से अनभिज्ञ थे इस लिए ऐसा उत्तर दिया। एक अन्य विशिष्ठ प्रतिनिधि ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा था आप लोग शकर बोइये। ये दोनों ही उत्तर  उन  जन प्रतिनिधियों के थे जो बिना सामाजिक  कार्य किये ही ऊपर से थोप दिए गए थे।

हरियाणा सरकार  ने सांसदों /विधयकों की  न्यूनतम  शैक्षिक अर्हता   निर्धारित करने   के लिए  केंद्र  सरकार को पत्र लिखा है [a]

लोकतंत्र में बढ़ता सत्ता का आकर्षण

 आज लोकतंत्र में सत्ता प्राप्ति की अभिरुचि सभी लोगों में है। चाहे वे लोक सेवक के रूप में  उच्च पद पर आसीन रहे हों,उद्योपति  हों , फिल्म अभिनेता हों या फिर खेल जगत से सम्बंधित हों। प्रायः देखने में आता है  कि फिल्म अभिनेता भीड़  जुटाने में अधिक सफल रहते है. और केवल  जन प्रतिनिध  बनने में ही सफल  नहीं होते बल्कि सत्ता पर काबिज होते देखे गए। भारत का तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहाँ अभिनेता से राजनेता बनकर  कई दशक तक राज्य के शासन की बागडोर सम्हाली गई । ऐसे राजनेता अर्थ की धमक से सत्ता पर काबिज हो जाते हैं उन्हें  समाजसेवा करने का  न  कोई  जमीनी  अनुभव और न अनुभूति। हाँ इतना अवश्य है ऐसे  लोग समाज सेवा के लिए भारत रत्न का पुरस्कार अवश्य मांग करते देखे गए । 

महिला जनप्रतिनिधि : अधिकांश महिलायें किसी  लोक सेवक के पद  से त्याग पत्र  /अवकाश प्राप्त  के पश्चात्  या राजनीतिक पृष्ठ भूमि के परिवारों से सम्बद्ध ही  सीधे सक्रिय राजनीति में प्रवेश करती हैं।

आज  जन प्रतिनिधि के लिए समाज सेवा आवश्यक नहीं है। हाँ धन बल चाहिए और इस बल से  समाज सेवक होने का प्रमाण पत्र प्राप्त भी हो जाता है।

पंचायतों में अनिवार्य योग्यता 
 राजस्थान और हरियाणा  की पंचायतों में चुनाव लड़ने वालों ले लिए अनिवार्य योग्यता है। अन्य राज्यों में भी पंचायतों में अनिवार्य योग्यता  का निर्धारण  करने के लिए केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी  ने प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को पत्र  लिखने की बात कही [1] . उत्तराखंड में सरकार ने पंचायत के चुनाव में उम्मीदवारों के लिए  न्यूनतम अर्हता निर्धारित करने के लिए निश्चय किया। योग्यता का निर्धारण ग्राम पंचायत ,क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत के सभी पदों के लिए होगा। 1(a)

अभिमत 
(१) सत्ता पर अच्छी पकड़ और  कानून के अच्छे ज्ञान के लिए जन प्रतिनिधि (सांसद /विधायक ) के लिए न्यूनतम शैक्षिक अर्हता  स्नातक होनी चाहिए एवं
(२) जनता की वास्तविक  समस्याओं  की अनुभूति के लिए  समाज कार्य ( Social Work ) में  दो वर्षीय  डिप्लोमा पाठ्य क्रम
अथवा
१०+२  के पश्चात् सोशल वर्क में चार वर्षीय बी टेक  की  उपाधि।

 हमारा उक्त अर्हता सम्बन्धी विचार केवल समाज सेवा में नवीन पदार्पण करने वाले लोगों के निमित्त है। इससे केवल समाज सेवा के  वास्तविक एवं इच्छुक व्यक्ति ही  राजनीति  की ओर अग्रसर होंगे और धन बल के आधार पर  लोगों का  सीधे राजनीति में प्रवेश पर अंकुश लगेगा।

जब पंचायत प्रतिनिधियों के लिए योग्यता का निर्धारण हो सकता है तो सांसदों/विधायकों के लिए क्यों नहीं।




विप्र सुदामा (खण्ड काव्य ) - अशर्फी लाल मिश्र

 --  लेखक -अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर कानपुर। Asharf Lal Mishra(1943-----) 1- विप्र सुदामा -1  [1] 2- विप्र सुदामा - 2  [1] 3- विप्र सुदामा - ...