By : अशर्फी लाल मिश्र
Asharfi Lal Mishra |
Updated on 11/08/2018
प्राचीन काल से ही भारत में शिक्षा का विशेष महत्व रहा है। विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला में स्थापित किया गया था। चौथी शताब्दी में में नालंदा विश्वविद्यालय की गणना विश्व के श्रेठ विश्वविद्यालयों में थी। कहा जाता है कि उस समय नालंदा विश्वविद्यालय में १०,००० विद्यार्थी और २००० शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय में चरक और सुश्रुत ,आर्यभट्ट ,भाष्कराचार्य,चाणक्य,पतञ्जलि ,वात्स्यायन जैसे उद्भट विद्वान शिक्षक थे।
इस विश्वविद्यालय ने अपनी राष्ट्रीय और जातीय सीमाओं को तोड़ते हुए चीन,जापान,कोरिया,इंडोनेशिया ,फारस,तुर्की आदि देशों के छात्रों और विद्वानों को आकर्षित किया। यहाँ विज्ञान ,खगोलविज्ञान, गणित ,चिकित्सा ,भौतिक विज्ञान ,रसायन विज्ञान, इंजीनियरिंग के साथ-साथ वेद,दर्शन,सांख्य,योग, तर्क , बौद्ध दर्शन के साथ विदेशी दर्शन की शिक्षा दी जाती थी।
स्वतंत्रता के पूर्व शिक्षा सर्व सुलभ नहीं थी। आजादी के बाद राष्ट्र प्रेमियों, शिक्षा अनुरागियों में विद्यालय खोलने की एक होड़ सी लग गई। परिणाम स्वरुप देश के हर कस्बे में विद्यालय खुले। छात्र अनुशासित और शिक्षक कर्मठ एवं लगनशील थे। विद्यालय /महाविद्यालय राजनीति से परे थे। परीक्षाओं में नकल का कोई स्थान नहीं था।
वर्ष १९७० के बाद यदा -कदा हल्के फुल्के नकल के प्रकरण दिखाई पड़ते थे। १९८०-१९९० के दशक में नकल की हवा बहने लगी।
वर्ष १९८७ में शिक्षा ने एक घटिया उद्योग का रूप ले लिया। शिक्षा विभाग ने सवित्त मान्यता के स्थान पर माध्यमिक तक वित्तविहीन और उच्च शिक्षा में स्ववित्त पोषित मान्यताओं का दरवाजा खोल दिया। शिक्षा के इस उद्योग में लगभग प्रत्येक जनप्रतिनिधि भी कूद पड़े। इससे विद्यालयों के लिए निर्धारित मानदण्ड तार-तार गए।
विद्यालयों, महाविद्यालयों के साथ -साथ प्राथमिक शिक्षा में भी शिक्षण,परीक्षण ,निरीक्षण अनुशासन एक आदर्श वाक्य तक सीमित हो गए। बोर्ड /विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में ठेके उठने लगे। परीक्षा केंद्रों , प्राइवेट छात्रों के पंजीकरण केंद्रों एवं मूल्याङ्कन केंद्रों एवं परीक्षा केंद्रों में छात्र आबंटन हेतु जिला विद्यालय निरीक्षक के यहाँ रेट निर्धारित होने लगे।
वर्ष १९९५ में उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री कल्याण सिंह ने नकल अध्यादेश लागू करने के साथ-साथ स्वकेन्द्र की व्यवस्था समाप्त कर दी इससे नकल तो रुकी। लेकिन युवा मन की कमजोरी को देखकर आगामी चुनाव के पूर्व मुलायम सिंह यादव ने नकल अध्यादेश समाप्त करने एवं स्वकेन्द्र प्रणाली लागू करने की घोषणा कर दी। बस यहीं से उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था गर्त में चली गई। यही स्थति बिहार ,महाराष्ट्र आदि प्रांतों में भी हो गई।
अब स्थिति यह हो गई है कि प्रदेश में मेरिट के लिए बोली प्रारम्भ हो गई। विश्वविद्यालयों ने उपाधियाँ भी बेचनी शुरू दी। पी-एच डी की थीसिस भी अन्य के द्वारा लिखी जाने लगीं। अवैध प्रवेश भी शिक्षा उद्योग की एक कड़ी है [1]
आज युवक अपनी उपाधियाँ लेकर बीच सड़क में या तो उन्हें फाड् रहे हैं या फिर उन्हें जला कर अपना आक्रोश जाहिर कर रहे हैं
डुप्लीकेट प्रोफेसर
आज उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विशेषकर स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में एक प्रोफ़ेसर चार -चार कॉलेजों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं या फिर अपने प्रमाण पत्र इन संस्थाओं में जमा कर वेतन ले रहे हैं। देश में ८० हजार प्रोफ़ेसर एक से अधिक स्थानों में काम करते पाए गए हैं। [2] [3]
देश में शिक्षा उद्योग तो पनपा परन्तु उत्पादन घटिया। .आज देश में स्नातकों ( टेक्निकल ,चिकित्सा,कानून ,प्रबन्धन,शिक्षा आदि )की एक लम्बी लाइन है। उनकी न तो अपने देश में और न ही कहीं विदेश में पूंछ है।
सरकार के प्रयास
शिक्षा के क्षेत्र में जो भी प्रयास हो रहे हैं वे पाठ्यक्रम में संशोधन तक सीमित है .केन्द्रीय विद्यालयों में स्मार्ट क्लासेज की व्यवस्था हो रही है। केंद्रीय विद्यालय सहित सीबीएसई तथा अन्य बोर्डों (केंद्र व् राज्य ) से मान्यता प्राप्त विद्यालय योग्य शिक्षकों और संसाधन की कमी से जूझ रहे हैं।
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