Blogger : Asharfi Lal Mishra
Updated on 25/12/2017
भारत ने सदैव से शिक्षा को विशेष महत्व दिया है। विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय भारत में 700 ई० पू० तक्षशिला में स्थापित किया गया था। चौथी शताब्दी में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय की गणना विश्व के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में थी। कहा जाता है कि 7 वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय में 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय में चरक औरसुश्रुत,आर्यभट्ट,भास्कराचार्य,चाणक्य,पतंजलि,वात्स्यायन आदि जैसे विद्वान शिक्षक थे।
भारत ने सदैव से शिक्षा को विशेष महत्व दिया है। विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय भारत में 700 ई० पू० तक्षशिला में स्थापित किया गया था। चौथी शताब्दी में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय की गणना विश्व के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में थी। कहा जाता है कि 7 वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय में 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय में चरक औरसुश्रुत,आर्यभट्ट,भास्कराचार्य,चाणक्य,पतंजलि,वात्स्यायन आदि जैसे विद्वान शिक्षक थे।
विज्ञान,गणित,खगोलविज्ञान,चिकित्सा,रसायनविज्ञान,भौतिक विज्ञान ,इंजीनियरिंग के साथ -साथ वेद ,दर्शन , सांख्य ,योग ,बौद्ध एवं विदेशी दर्शन व तर्कशास्त्र के अध्ययन की विशेष व्यवस्था थी। नालंदा विश्वविद्यालय ने अपनी राष्ट्रीय और जातीय सीमाओं को तोड़ते हुए चीन,जापान,कोरिया ,इंडोनेशिया ,फारस,तुर्की आदि देशों के विद्वानों और छात्रों को अपनी ओर आकर्षित किया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हर सरकार ने शिक्षा को एक प्रयोगस्थल के रूप में लिया। पाठ्यक्रम बदलते रहे ,स्कूल खुलते चले गए परन्तु शिक्षा की गुणवत्ता पर किसी ध्यान ही नहीं गया। शिक्षकों के वेतन बढ़ते गए ,छात्र पंजीकृत होते रहे। देश में शिक्षित लोगों का प्रतिशत बढ़ता चला गया। पास होने के लिए ,नक़ल करने के लिए बोली लगने लगी।
राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा की अत्यंत दुर्गति देखकर शिक्षक संघों की सशक्त आवाज पर वर्ष 1976 में शिक्षा को समवर्ती सूची में लाया गया। इससे यह कल्पना की गई कि राज्य और केंद्र दोनों सरकारें मिलकर शिक्षा की हो रही बदहाल स्थिति से निजात मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शिक्षा के समवर्ती सूची में होते ही केंद्र ने राज्य सरकारों को अपने हिस्से का धन आवंटित कर देना केवल अपना कर्तव्य समझ लिया। इससे राज्य पर शिक्षा के धन का बोझ तो कम हो गया लेकिन शिक्षा में कोई गुणात्मक सुधार नहीं हुआ।
1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई। इसमें में पाठ्यक्रम ,परीक्षा प्रणाली में बदलाव और माध्यमिक शिक्षा तक राज्य की जिम्मेदारी से बचने के मुख्य बिंदु थे। परिणाम स्वरुप कुछ राज्यों (मध्य प्रदेश ) में शिक्षकों के दो काडर हो गए। प्रशासन भी दोहरा। उत्तर प्रदेश राज्य में माध्यमिक परीक्षाओं में होने वाली नक़ल को इस नई परीक्षा प्रणाली में मानों पंख लग गए । 1987 से वित्त विहीन विद्यालयों की एक लम्बी श्रंखला खड़ी हो गई। उत्तर प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा की परीक्षाओं पर नक़ल माफियाओं का आधिपत्य हो गया। अब शिक्षा के क्षेत्र में काला युग प्रारम्भ हो गया। शिक्षा देने वाले विद्यालय परीक्षाफल में पिछड़ने लगे और केवल पंजीकृत विद्यालय रिजल्ट में अग्रगणी हो गए। जो स्थिति माध्यमिक विद्यालयों की थी ठीक उसी के अनुरूप प्राथमिक और उच्च शिक्षा की भी थी।
वर्ष 1995 में माध्यमिक और विश्ववद्यालय की परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने नक़ल अध्यादेश के साथ स्वकेंद्र व्यवस्था को समाप्त कर नकल रोकने अचूक अस्त्र चलाया और नक़ल रुकी भी परन्तु मुलायम सिंह ने अगले चुनाव से पूर्व नकल अध्यादेश और स्वकेंद्र समाप्त करने का सन्देश युवा पीढ़ी को दिया। इसके कारण पढ़ाई की जो गति थी वह भी ठप्प गई और युवा मन केवल किसी प्रकार प्रमाण पत्र पाने की दिशा की ओर अग्रसर हो चले।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2016 पर संक्षिप्त टिपण्णी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2016 पर संक्षिप्त टिपण्णी
पूर्व प्राथमिक शिक्षा
नई शिक्षा नीति 2016 के परिपेक्ष्य में : आंगनबाड़ी केंद्रों को प्राथमिक विद्यालयों के परिसर में अथवा उसके निकट संचालित किया जायेगा जहाँ पर 4-5 आयु वर्ग के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था होगी और इसके बाद इन छात्रों का प्रवेश प्राथमिक विद्यालयों में होगा।
वर्तमान स्थिति : अधिकांश केंद्र कागजों पर संचालित हैं। फर्जी पंजीकरण के आधार पर पौष्टिक आहार उठाया जाता है। इन केन्द्रो का निरीक्षण या तो होता ही नहीं या फिर कागजों पर।
प्रश्न : पूर्व प्राथमिक शिक्षा कैसे संचालित होगी ?
प्राथमिक शिक्षा
- प्राथमिक शिक्षा में छात्रों को फेल न करने की नीति होगी।
- शिक्षण का माध्यम मातृभाषा /क्षेत्रीय भाषा।
- अंग्रेजी अनिवार्य।
- कम नामांकन वाले विद्यालयों को समेकित करना।
- मिड डे मील का पर्यवेक्षण शिक्षकों पर नहीं होगा।
वर्तमान स्थिति :
- शिक्षक उपस्थित होते हैं परन्तु समयनिष्ठा का अभाव ।
- दूरस्थ विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थित चिंताजनक।
- निरीक्षण प्रणाली कमजोर।
- NPRC की भूमिका केवल विभागीय सूचनाओं का आदान प्रदान करना ।
- प्रधानाध्यापक मिड डे मील का रिकॉर्ड कीपर। प्रबंधक।
- छात्रों का फर्जी पंजीकरण
- मान्यता रहित विद्यालयों का समान्तर सञ्चालन।
- छात्रों की उपस्थिति चिंताजनक।
- छात्रों को समय पर भेजने में अभिभावकों में जागरूकता अभाव।
प्रश्न :
- छात्रों और शिक्षकों में समयनिष्ठा (Punctuality) कैसे उत्पन्न होगी?
- समय पर विद्यालय पहुंचे छात्रों की सुरक्षा की गारण्टी कौन लेगा ?
- छात्र के अनुपस्थित होने पर शिक्षक /अभिभावक में कौन उत्तर दायी होगा?
- मान्यरहित विद्यालयों को बंद करने में विभागीय अधिकारी असफल क्यों हैं?
- छात्रों के फेल न होने की नीति से गुणात्मक शिक्षा का मूल्याङ्कन कैसे होगा ?
- क्या विद्यालयों के समेकन के पहले मान्यतारहित/मानकविहीन विद्यालयों का सञ्चालन बंद होगा ?
उच्च प्राथमिक शिक्षा
- छात्रों के फेल होने की नीति लागू होगी।
- सूचना प्रणाली (Information Communication Technology )
- शिक्षण का माध्यम स्थानीय /क्षेत्रीय भाषा /मातृभाषा , अंग्रेजी अनिवार्य तथा संविधान के अन्तर्गत तीसरी भाषा।
- कम छात्रों वाले विद्यालयों का समेकन
- मिड डे मील का पर्यवेक्षण शिक्षकों पर नहीं होगा।
वर्तमान स्थिति
- शिक्षकों की उपस्थिति परन्तु समय निष्ठा का अभाव।
- दूरस्थ विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति चिंताजनक।
- निरीक्षण प्रणाली कमजोर।
- NPRC की भूमिका ?.
- प्रधानाध्यापक मिड डे मील प्रबंधक/रिकॉर्ड कीपर।
- छात्रों का कम पंजीकरण का मुख्य कारण मान्यतारहित विद्यालयों का सञ्चालन।
- छात्रों की उपस्थिति चिंताजनक
- अनर्ह शिक्षकों की कोचिंग से छात्रों का ज्ञान अधकचरा एवं कक्षा में छात्र भ्रमित हो रहे हैं।
- लगभग 30 % छात्राएं पढ़ाई छोड़ देती हैं [1]
प्रश्न
- शिक्षकों एवं छात्रों में समयनिष्ठा (Punctuality) का पालन कैसे होगा ?
- समय पर विद्यालय पहुंचे छात्रों की सुरक्षा की गारण्टी कौन लेगा ?
- छात्रों के अनुपस्थित होने के लिए शिक्षक/अभिभावक में कौन उत्तरदायी होगा?
- मान्यतारहित विद्यालयों के सञ्चालन में विभागीय अधिकारीयों की क्या भूमिका है ?
- यदि कक्षा ६ में प्रवेश हुए छात्रों को हिंदी,अँग्रेजी और गणित का पूर्व न होने पर सूचना विज्ञान (Information Communication Technology ) का शिक्षण कार्य कैसे होगा ?
- विद्यालयों के समेकन के पूर्व क्या मान्यता रहित विद्यालय बंद होंगे ?
- क्या अनर्ह शिक्षकों द्वारा कोचिंग चलती रहेगी ?
माध्यमिक शिक्षा
- विज्ञान ,गणित और अँग्रेजी का पाठ्यक्रम सम्पूर्ण देश में एक समान।
- डिजिटल ज्ञान
- कक्षा 10 में विज्ञान ,गणित और अंग्रेजी में दो पाठ्यक्रम
- भाग -क :उच्च स्तर
- भाग-ख :निम्न स्तर
- कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा अनिवार्य होगी। बोर्ड की परीक्षा में कक्षा 10 का समग्र पाठ्यक्रम होगा।
- स्थान्तरण प्रमाणपत्र /स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र को समाप्त करने की व्यवस्था।
- मिड डे मील का पर्यवेक्षण शिक्षकों पर नहीं।
वर्तमान स्थिति
- राजकीय , स्थानीय निकाय द्वारा संचालित ,सहायता प्राप्त ,वित्त विहीन मान्यताप्राप्त के अतिरिक्त गैरमान्यताप्राप्त विद्यालय अस्तित्व में।
- राजकीय,स्थानीय निकाय संचालित एवं सहायता प्राप्त विद्यालय शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं।
- निरीक्षण व्यवस्था नहीं के बराबर।
- छात्रों और शिक्षकों में समयनिष्ठा का अभाव
- छात्रों के मूल्याङ्कन की कमजोर व्यवस्था
- वित्त विहीन विद्यालयों में केवल छात्रों का फर्जी पंजीकरण
- वित्त विहीन विद्यालयों में अनर्ह शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य
- अधिकांश वित्त विहीन विद्यालय नक़ल के सुदृढ़ केंद्र
- विद्यालय के गणित ,विज्ञान ,अंग्रेजी एवं वाणिज्य के शिक्षकों द्वारा व्यक्तिगत कोचिंग का दबाव।
- केंद्रीय मूल्याङ्कन में निर्धारित उत्तर पुस्तिकाओं से अधिक जांचने पर मूल्यांकन में औसत अंक दिए हैं.
प्रश्न
- क्या वित्त विहीन विद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों का भौतिक सत्यापन की कोई व्यवस्था होगी ?
- बोर्ड परीक्षाओं में नक़ल रोकने के क्या ठोस उपाय होंगे ?
- वित्त विहीन विद्यालयों में अनर्ह शिक्षक होने बावजूद भी प्रदेश में मेरिट में स्थान कैसे ?
- माध्यमिक विद्यालयों में प्रयोगशालाओं के अभाव में प्रैक्टिकल कैसे होते हैं ?
- क्या मान्यता रहित विद्यालय बंद होंगे?
- क्या माध्यमिक शिक्षकों पर कोचिंग करने पर प्रतिबन्ध लगेगा?
उच्च शिक्षा
- एक विश्वविद्यालय में अधिकतम 100 कॉलेज सम्बद्ध होंगे। 100 से अधिक होने पर दूसरा विश्वविद्यालय गठित होगा
- राष्ट्रीय उच्च शिक्षा अध्येतावृत्ति के प्रबंधन हेतु स्वतंत्र तंत्र की व्यवस्था।
- प्रत्येक उच्च शिक्षा संस्थान की एक समर्पित वेबसाइट अनिवार्य। जिसमें
- संकाय
- प्रवेश शुल्क
- कार्यक्रम
- परीक्षा परिणाम
- प्लेसमेंट
- शासन
- वित्त बिज़नेस टाई -उप
- प्रबंधन आदि पारदर्शी विधि से सूचनाएँ
- नवीन शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति के पूर्व राष्ट्रीय या राज्य प्रशिक्षण अकादमी से 3-6 मास प्रशिक्षण अनिवार्य।
वर्तमान स्थिति
- राजकीय एवं सहायता प्राप्त विद्यालय शिक्षकों की कमी का कर रहे सामना।
- स्ववित्त पोषित कॉलेज केवल छात्र पंजीकरण के केंद्र।
- स्ववित्त पोषित कॉलेज/ निजी यूनिवर्सिटी /डीम्ड में अनर्ह शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य भी।
- स्ववित्त पोषित कॉलेजों में उठते नकल के ठेके।
- एक ही शिक्षक का नाम कई स्ववित्त पोषित कॉलेजों में।
- उपाधियाँ भी खरीदी जा रहीं।
- छात्रों पर कोचिंग का रहता दबाव।
प्रश्न
- क्या स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों में छात्रों और शिक्षकों का भौतिक सत्यापन होगा ?
- क्या स्ववित्त महाविद्यालय अपने कॉलेज की वेबसाइट पर पारदर्शी ढंग से शिक्षकों सहित सम्पूर्ण वांछित विवरण अपलोड करेंगे ?
- केंद्रीय मूल्याङ्कन में एक दिन में निर्धारित उत्तर पुस्तिकाओं से अधिक उत्तर पुस्तिकाएं क्यों आवंटित की जाती हैं।
कुछ सार्थक प्रयासों की शुरुआत
- नई शिक्षा नीति २०१६ में शिक्षा पर दुगुने धन की व्यवस्था
- शिक्षकों की नियुक्ति में गुणात्मक पहलू पर जोर
- अयोग्य शिक्षकों की छटनी
- परीक्षा केंद्रों के निर्धारण में कुछ सुचिता का प्रयास
कुछ अनछुए पहलू
- मान्यतारहित विद्यालय /मानक विहीन विद्यालय शिक्षा के ब्लैक स्पॉट
- अनर्ह शिक्षकों द्वारा कोचिंग
- पंजीकृत/अपंजीकृत कोचिंग की समय सारिणी एवं शिक्षकों की योग्यता का निरीक्षण
- शिक्षकों के कार्य स्थल से आवास की दूरी अधिक होना
- अधिकांश शिक्षक अपने बच्चों को अपने स्कूल/बोर्ड/कॉलेज में प्रवेश नहीं दिलाते।
अभिमत
हमारा अभिमत है कि जब तक विभाग की निरीक्षण प्रणाली भ्रष्ट रहेगी तब तक शिक्षा में किसी बदलाव की कल्पना कठिन है। जब तक अनर्ह शिक्षकों एवं मान्यता रहित विद्यालयों / मानक विहीन विद्यालयों को प्रतिबन्धित नहीं किया जाता तब तक शिक्षा में बदलाव एक दिवा स्वप्न होगा। जब तक महाविद्यालयों में बिना प्रयोगशालाओं के अनर्ह शिक्षक शिक्षण कार्य करेंगे तब तक ये महाविद्यालय केवल एक पंजीकरण केंद्र ही रहेंगे और छात्रों की उपाधियाँ मात्र एक कागज का टुकड़ा होंगी। अनर्ह शिक्षकों द्वारा कोचिंग से छात्र कक्षा में भ्रमित होते हैं और उनका भविष्य चौपट हो जाता हैं
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