सोमवार, 8 मई 2017

कवि रूपरसिक

By : अशर्फी लाल मिश्र
                                                                 अशर्फी लाल मिश्र 

जीवन परिचय :
श्री रूपरसिक  की निम्बार्क सम्प्रदाय के प्रसिद्ध  रसिक भक्त कवियों  में गणना की जाती  हैं। केवल निम्बार्क सम्प्रदाय में नहीं ,अन्य सम्प्रदाय के रसिकों में भी इन्हें बहुत आदर प्राप्त है। इन्होंने अपने हरिव्यास यशामृत में श्री हरिव्यासदेव को अपना गुरु स्वीकार किया है~~
श्री हरिव्यास भजो मन भाई। 
असरन सरन करन  सुख दुख हर महा प्रेम घन आनन्ददाई।।
अतिदयाल जनपाल गुणागुण सकल लोक     आचारज राई। 
वेदन   को अति   ही   दुल्लभ   सो    महावाणी  आप  बनाई।।
दंपति मिलन सनातन मारग    भजन रीति जा प्रभु दरसाई। 
रूपरसिक रसिकन की जीवन महिमा   अमित  पार न पाई।।
इसी आधार पर इनका समय १७ वीं शताब्दी अनुमानित किया जा सकता है। किन्तु अपने लीलविंशति ग्रन्थ का रचनाकाल इन्होंने इस प्रकार दिया है;
पंदरा  सै रु     सत्यासिया  मासोत्तम आसोज। 
यह प्रबन्ध पूरन भयो शुक्ला सुभ दिन  द्योज।।
इस दोहे के आधार पर साम्प्रदायिक विद्वान रूपरसिक का समय सोलहवीं शताब्दी ठहराते हैं।

रचनाएँ :
रूपरसिक जी  के तीन हस्तलिखित  उपलब्ध हैं :
  1. बृहदुत्सव मणिमाल 
  2. हरिव्यास यशामृत 
  3. लीलाविंशति 
(यह ग्रन्थ सर्वेश्वर कार्यालय ,वृन्दावन देखे गए )
माधुर्य भक्ति :
उक्त तीनों ग्रंथों में राधा-कृष्ण की प्रेम -लीलाओं का वर्णन करते समय रूपरसिक जी ने अपने उपास्य ,उपासना तथा उपासक भाव के प्रति जो विचार प्रकट किये हैं उनका सारांश इस प्रकार है :
  1. रूपरसिक के उपास्य राधा-माधव सर्व समर्थ हैं। 
  2. राधा-माधव की राजधानी वृन्दावन है जहां ये  भक्तों को अपनी वभिन्न लीलाओं से सुख प्रदान करते हुए सदा निवास करते हैं। 
  3. राधा-माधव की सेवा भक्त को अनायास ही आनन्द की प्राप्त हो जाती है। 
हमारे राधा  माधो धेय। 
कहु  बात  की  कमी  न  राखें  जो  चाहें   सो  देय।।
रजधानी  वृन्दावन  जैसी   निगमागम   की ज्ञेय। 
अनायास ही रूपरसिक जन पावत सब सुख सेय।।:(बृहदुत्सव मणिमाल )
राधा-कृष्ण के विहार का दर्शन कर उसी के ध्यान में सदा लीन  रहना ही इनकी उपासना एवं भजन-रीति है। इसी से सहज-प्रेम की प्राप्ति  सम्भव  है:
पिय लिय लगाय हिय सों प्रवीनि। 
मन भायो सुख ले छाँड़ि     दीनि।।
यह  दम्पति को मधुरितु विलास। 
गावै    जो       पावै         प्रेमरास।।
महा  मधुर  मधुर ते अति  अनूप। 
रसपान   करे होय     रसिक  रूप।। (मणिमाल )
अपनी इसी भजन-रीति के अनुरूप इन्होंने राधा-कृष्ण की सभी विहार लीलाओं ~~ रति ,झूलन,रास-नृत्य आदि का सुन्दर वर्णन किया है:
आजु सखी झुलत हिंडोरे देखे। 
कबहुँक    प्यारी    कबहुँक   प्यारो   दोऊ  प्रीति   बिसेषें। 
कोमल कर को परस पाय के मदत मदन वस कर लीन्हें। 
धरे अंक पीवत      अधरामृत   सहज  सुरत   सुख दीन्हें। 
मंद-मंद सों  चलत     हिंडोरा प्रेम बिवस भये सुख दीन्हें।।(मणिमाल )

साभार स्रोत :
  1. बृहदुत्सव मणिमाल :रूप रसिक 
  2. हरिव्यास यशामृत :रूप रसिक 
  3. लीलाविंशति :रूप रसिक
  4.  ब्रजभाषा के कृष्ण- काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण  :हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७ 

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