By : अशर्फी लाल मिश्र
जीवन परिचय :
राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रवर्तक एवं कवि गोस्वामी हितहरिवंश का जन्म मथुरा मण्डल के अन्तर्गत बाद ग्राम में हुआ। इनका जन्म वि ० सं ० १५५९ में वैशाख मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को प्रातः काल हुआ। इनके पिता नाम व्यास मिश्र और माता का नाम तारारानी था। जन्म के अवसर पर इनके पिता बादशाह के साथ दिल्ली से आगरा जा रहे थे। मार्ग में ही बाद ग्राम में हितहरिवंश जी का जन्म हुआ। इनके जन्म के बाद व्यास मिश्र देवबन में रहने लगे।
व्यास मिश्र स्वयं विद्वान थे अतः उन्होंने बालक हरिवंश की उचित शिक्षा का प्रवन्ध आठ वर्ष की आयु में कर दिया। यथा अवसर पर इनका विवाह रुक्मिणी देवी से हुआ। रुक्मिणी देवी से इनके तीन पुत्र ~~
अशर्फी लाल मिश्र |
जीवन परिचय :
राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रवर्तक एवं कवि गोस्वामी हितहरिवंश का जन्म मथुरा मण्डल के अन्तर्गत बाद ग्राम में हुआ। इनका जन्म वि ० सं ० १५५९ में वैशाख मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को प्रातः काल हुआ। इनके पिता नाम व्यास मिश्र और माता का नाम तारारानी था। जन्म के अवसर पर इनके पिता बादशाह के साथ दिल्ली से आगरा जा रहे थे। मार्ग में ही बाद ग्राम में हितहरिवंश जी का जन्म हुआ। इनके जन्म के बाद व्यास मिश्र देवबन में रहने लगे।
व्यास मिश्र स्वयं विद्वान थे अतः उन्होंने बालक हरिवंश की उचित शिक्षा का प्रवन्ध आठ वर्ष की आयु में कर दिया। यथा अवसर पर इनका विवाह रुक्मिणी देवी से हुआ। रुक्मिणी देवी से इनके तीन पुत्र ~~
- वनचन्द्र
- कृष्णचन्द्र
- गोपीचंद्र
तथा एक पुत्री साहिब देवी हुई।
हरवंश जी के जीवन के प्रथम बत्तीस वर्ष देवबन में व्यतीत हुए। माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् समस्त गृह-सम्पत्ति ,पुत्र ,स्त्री आदि का त्यागकर ये वृन्दावन की ओर चल पड़े। मार्ग में चिड़थावल ग्राम से इन्होंने राधावल्लभ की मूर्ति लेकर एवं ब्राह्मण की दो कन्याओं को श्री जी की आज्ञा से स्वीकार कर वृन्दावन आ गये। वृन्दावन में इन्होंने राधावल्लभ लाल की स्थापना की और उन्ही के भजन एवं सेवा-पूजा में अपना शेष जीवन व्यतीत कर दिया। पचास वर्ष की आयु में वि ० सं ० १६०९ में शरद पूर्णिमा की रात्रि को इस नश्वर संसार को त्याग दिया।
रचनाएँ :
- राधासुधानिधि :संस्कृत भाषा में राधाप्रशस्ति
- स्फुट पदावली ;ब्रजभाषा में
- हित चौरासी :ब्रजभाषा में
स्फुट पदावली में सिद्धान्त के कुछ दोहों के अतिरिक्त राधा- कृष्ण की ब्रज-लीला का वर्ण है। और हित चौरासी में मधुर -लीला -परक चौरासी स्फुट पदों का संग्रह है। हित चौरासी राधावल्लभ सम्प्रदाय का मेरुदण्ड है जिसमें राधा -कृष्ण का अनन्य प्रेम,नित्य विहार ,रासलीला ,भक्ति-भावना ,प्रेम में मान आदि की स्थिति ,राधावल्लभ का यथार्थ स्वरुप आदि वर्णन किया गया है।
माधुर्य भक्ति :
गोस्वामी हितहरिवंश की आराध्या श्री राधा हैं किन्तु राधा-वल्लभ होने के श्रीकृष्ण का भी बहुत महत्व है। अपने सिद्धांत के छार दोहों में इन्होंने कृष्ण के ध्यान तथा नाम-जप का भी निर्देश दिया है। ~~
श्रीराधा-वल्लभ नाम को ,ह्रदय ध्यान मुख नाम। इस प्रकार सिद्धांततः आनन्द-स्वरूपा राधा ही आराध्या हैं। किन्तु उपासना में राधा और उनके वल्लभ श्रीकृष्ण दोनों ही ध्येय हैं ।
गोस्वामी हितहरिवंश के अनुसार आनन्दनिधि श्यामा ने श्रीकृष्ण के लिए ही बृषभानु गोप के यहां जन्म लिया है। वे श्रीकृष्ण के प्रेम में पूर्ण रूपेण रंगी हुई हैं। प्रेममयी होने के साथ-साथ श्रीराधा रूपवती भी हैं। इनकी सुन्दरता का वर्णन दृष्टव्य :
आवत श्री बृषभानु दुलारी।
रूप राशि अति चतुर शिरोमणि अंग-अंग सुकुमारी।।
प्रथम उबटि ,मज्जन करि , सज्जित नील बरन तन सारी।
गुंथित अलक , तिलक कृत सुन्दर ,सुन्दर मांग सँवारी।।
मृगज समान नैन अंजन जुत , रुचिर रेख अनुसारी।
जटित लवंग ललित नाशा पर ,दसनावली कृतकारी।।
श्रीफल उरज कुसंभी कंचुकी कसि ऊपर हार छवि न्यारी।
कृश कटि ,उदर गंभीर नाभि पुट ,जघन नितम्बनि भारी।।
मानों मृनाल भूषन भूषित भुज श्याम अंश पर डारी।।
जै श्री हितहरिवंश जुगल करनी गज विहरत वन पिय प्यारी।।(हितचौरासी :पद ४५ )
राधावल्लभ भी सौन्दर्य की सीमा हैं। उनके वदनारविन्द की शोभा कहते नहीं बनती। उनका यह रूप-माधुर्य सहज है ,उसमें किसी प्रकार की कृत्रिमता नहीं। उनके इस रूप का पान कर सभी सखियाँ अपने नयनों को तृप्त करती हैं।
लाल की रूप माधुरी नैननि निरखि नेकु सखि।
मनसिज मन हरन हास ,सामरौ सुकुमार राशि,
नख सिख अंग अंगनि उमंगी ,सौभग सीँव नखी।।
रंगमगी सिर सुरंग पाग , लटक रही वाम भाग ,
चंपकली कुटिल अलक बीच बीच रखी।
आयत दृग अरुण लोल ,कुंडल मंडित कपोल ,
अधर दसन दीपति की छवि क्योंहू न जात लखी।।
अभयद भुज दंड मूल ,पीन अंश सानुकूल ,
कनक निकष लसि दुकूल ,दामिनी धरखी।
उर पर मंदार हार ,मुक्ता लर वर सुढार,
मत्त दुरद गति ,तियन की देह दशा करखी।।(स्फुट वाणी :पद २२ )
श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी तथा वेणु-माधुरी से हरित-मना गोपी अपनी सखी से श्रीकृष्ण-मिलन की अभिलाषा जिस प्रकार प्रकट करती है उसका स्वाभाविक रूप हमें हितहरिवंश केके निम्न पद में मिलता है :
नन्द के लाल हरयो मन मोर।
हौं अपने मोतिन लर पोवति कांकर डारि गयो सखि मोर।।
अंक बिलोकनि चाल छबीली रसिक शिरोमणि नंदकिशोर।
कहि कैसे मन रहत श्रवन सुनि सरस मधुर मुरली को घोर।।
इंदु गोविन्द वदन के कारन चितवन को भये नैन चकोर।
जै श्री हितहरिवंश रसिक रस जुवती तू ले मिलि सखी प्राण अकोर।।(हितचौरासी ;पद १३ )
इस प्रकार की प्रेम दशा केवल राधा की नहीं है अपितु श्रीकृष्ण भी राधा के प्रेम में व्याकुल रहते हैं। उनकी इस आकुलता का वर्णन कवि ने निम्न पद में सुन्दर अलंकारिक भाषा में किया है~~
कहा कहौं इन नैननि की बात।
ये अलि प्रिया बदन अम्बुज रस अटके अनत न जात।।
जब जब रुकत पलक सम्पुट लट अति आतुर अकुलात।
लंपट लव निमेष अन्तर ते अलप-कलप सत सात।।
श्रुति पर कंज दृगंजन ,कुछ बिच मृगमद ह्वै न समात।
जै श्री हितहरिवंश नाभि सर जलचर जाँचत साँवल गात।।(हितचौरासी :पद ६० )
कवि द्वारा रास- लीला का सुन्दर वर्णन निम्न पद में ~~
आजु गोपाल रास रस खेलत पुलिन कल्पतरु तीर री सजनी।
शरद विमल नभचन्द्र बिराजत रोचक त्रिविध समीर री सजनी।।
चंपक बकुल मालती मुकुलित मत्त मुदित पिक कीर री सजनी।
देशी सुगंध राग रंग नीको ब्रज जुबतिन की भीर री सजनी।।
मधवा मुदित निसान बजायो व्रत छाड़्यो मुनि धीर री सजनी।
जै श्री हितहरिवंश मगन मन श्यामा हरत मदन घन पीर री सजनी।। (हितचौरासी :पद २४ )
साभार स्रोत:ग्रन्थ अनुक्रमणिका
श्रीराधा-वल्लभ नाम को ,ह्रदय ध्यान मुख नाम। इस प्रकार सिद्धांततः आनन्द-स्वरूपा राधा ही आराध्या हैं। किन्तु उपासना में राधा और उनके वल्लभ श्रीकृष्ण दोनों ही ध्येय हैं ।
गोस्वामी हितहरिवंश के अनुसार आनन्दनिधि श्यामा ने श्रीकृष्ण के लिए ही बृषभानु गोप के यहां जन्म लिया है। वे श्रीकृष्ण के प्रेम में पूर्ण रूपेण रंगी हुई हैं। प्रेममयी होने के साथ-साथ श्रीराधा रूपवती भी हैं। इनकी सुन्दरता का वर्णन दृष्टव्य :
आवत श्री बृषभानु दुलारी।
रूप राशि अति चतुर शिरोमणि अंग-अंग सुकुमारी।।
प्रथम उबटि ,मज्जन करि , सज्जित नील बरन तन सारी।
गुंथित अलक , तिलक कृत सुन्दर ,सुन्दर मांग सँवारी।।
मृगज समान नैन अंजन जुत , रुचिर रेख अनुसारी।
जटित लवंग ललित नाशा पर ,दसनावली कृतकारी।।
श्रीफल उरज कुसंभी कंचुकी कसि ऊपर हार छवि न्यारी।
कृश कटि ,उदर गंभीर नाभि पुट ,जघन नितम्बनि भारी।।
मानों मृनाल भूषन भूषित भुज श्याम अंश पर डारी।।
जै श्री हितहरिवंश जुगल करनी गज विहरत वन पिय प्यारी।।(हितचौरासी :पद ४५ )
राधावल्लभ भी सौन्दर्य की सीमा हैं। उनके वदनारविन्द की शोभा कहते नहीं बनती। उनका यह रूप-माधुर्य सहज है ,उसमें किसी प्रकार की कृत्रिमता नहीं। उनके इस रूप का पान कर सभी सखियाँ अपने नयनों को तृप्त करती हैं।
लाल की रूप माधुरी नैननि निरखि नेकु सखि।
मनसिज मन हरन हास ,सामरौ सुकुमार राशि,
नख सिख अंग अंगनि उमंगी ,सौभग सीँव नखी।।
रंगमगी सिर सुरंग पाग , लटक रही वाम भाग ,
चंपकली कुटिल अलक बीच बीच रखी।
आयत दृग अरुण लोल ,कुंडल मंडित कपोल ,
अधर दसन दीपति की छवि क्योंहू न जात लखी।।
अभयद भुज दंड मूल ,पीन अंश सानुकूल ,
कनक निकष लसि दुकूल ,दामिनी धरखी।
उर पर मंदार हार ,मुक्ता लर वर सुढार,
मत्त दुरद गति ,तियन की देह दशा करखी।।(स्फुट वाणी :पद २२ )
श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी तथा वेणु-माधुरी से हरित-मना गोपी अपनी सखी से श्रीकृष्ण-मिलन की अभिलाषा जिस प्रकार प्रकट करती है उसका स्वाभाविक रूप हमें हितहरिवंश केके निम्न पद में मिलता है :
नन्द के लाल हरयो मन मोर।
हौं अपने मोतिन लर पोवति कांकर डारि गयो सखि मोर।।
अंक बिलोकनि चाल छबीली रसिक शिरोमणि नंदकिशोर।
कहि कैसे मन रहत श्रवन सुनि सरस मधुर मुरली को घोर।।
इंदु गोविन्द वदन के कारन चितवन को भये नैन चकोर।
जै श्री हितहरिवंश रसिक रस जुवती तू ले मिलि सखी प्राण अकोर।।(हितचौरासी ;पद १३ )
इस प्रकार की प्रेम दशा केवल राधा की नहीं है अपितु श्रीकृष्ण भी राधा के प्रेम में व्याकुल रहते हैं। उनकी इस आकुलता का वर्णन कवि ने निम्न पद में सुन्दर अलंकारिक भाषा में किया है~~
कहा कहौं इन नैननि की बात।
ये अलि प्रिया बदन अम्बुज रस अटके अनत न जात।।
जब जब रुकत पलक सम्पुट लट अति आतुर अकुलात।
लंपट लव निमेष अन्तर ते अलप-कलप सत सात।।
श्रुति पर कंज दृगंजन ,कुछ बिच मृगमद ह्वै न समात।
जै श्री हितहरिवंश नाभि सर जलचर जाँचत साँवल गात।।(हितचौरासी :पद ६० )
कवि द्वारा रास- लीला का सुन्दर वर्णन निम्न पद में ~~
आजु गोपाल रास रस खेलत पुलिन कल्पतरु तीर री सजनी।
शरद विमल नभचन्द्र बिराजत रोचक त्रिविध समीर री सजनी।।
चंपक बकुल मालती मुकुलित मत्त मुदित पिक कीर री सजनी।
देशी सुगंध राग रंग नीको ब्रज जुबतिन की भीर री सजनी।।
मधवा मुदित निसान बजायो व्रत छाड़्यो मुनि धीर री सजनी।
जै श्री हितहरिवंश मगन मन श्यामा हरत मदन घन पीर री सजनी।। (हितचौरासी :पद २४ )
साभार स्रोत:ग्रन्थ अनुक्रमणिका
- हितचौरासी
- स्फुट पदावली
- ब्रजभाषा के कृष्ण- काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण :हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७
श्री हित हरिवंश जी अप्रकट कैसे हुआ था?
जवाब देंहटाएंइसके वारे एक page लिखिए 🙏🙏
धन्यवाद।
हटाएं