शुक्रवार, 19 मई 2023

लाल दोहा चालीसा - अशर्फी लाल मिश्र

 लेखक :  अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)






बंधु

बंधु   दिखें    गाढ़े   काम, या जो करता नेह।

जिमि बरगद की वायु जड़,पोषण करती देह।।1।।

लोकतंत्र

भ्रष्टाचार   दिन   दूना, मानवता का ह्रास।

समाज सेवा पास नहि,लोकतंत्र परिहास।।2।।

व्यर्थ

वर्षा   वृथा   समुद्र   में, धनकहि  देना  दान।

दिन में दीपक वृथा जनु, तृप्तहि भोजन मान ।।3।।

सरस्वती वंदना

विनती वीणा पाणि से, देहु हमें आशीष।

शब्दों के  गठजोड़  से, कहलाऊँ वागीश ।।4।।

अपमान

बिना मान मरिबो भलो, दुखड़ा इक पल जान।

बिना मान जीवन सदा, पल पल दुख अनुमान।।5।।

कपट

छल छद्म होय यदि पास,दूरी रखिए खास।

निकट  के  रिश्ते भले हि, मत करियो विश्वास।।6।।

चाह

अधम केवल धन चाहे, ज्ञानी  चाहे  मान।

नेता  को  कंचन कीर्ति, पाठक चाहे ज्ञान।।7।।

सरस्वती

रमा   का   वाहन उल्लू, हंस  जान  वागीश।

जाके कंठ गिरा बिराजे, कृपा जान जगदीश।।8।।

धरती प्यासी जान के ,जलघर पहुंचे धाय।

जलधर बरसे झूम के ,धरा मगन हो जाय।।9।।

जलधर  देखे गगन में,  केकी   हर्षित   होय।

जलधर बरसे  झूम के, कृषक मगन हो जाय।।10।।

प्रेम  धरा   का  मेघ   से, विधि ने दिया बनाय।

जब भी भू व्याकुल दिखे, घन  गरजे  हरसाय।।11।।

आवास 

झोपड़ि अच्छी महल से, जो आपनि कहलाय ।

जिमि बया बनाये   नीड़, मन  में अति हरसाय ।।12।।

माता

मां  सम  कोई  देव  नहि, अन्न समान  न दान।

पीपल सम कोइ तरु नहि, जनु जीवन वरदान।।13।।

कंचन 

अधिक आयु का मूल्य नहि, कंचन में गुण जान।

शब्दों    के   गठजोड़   का, कहीं न  होता मान।।14।।

वाणी 

वेश वसन  से  संत नहि, नहि कोई विद्वान।

दिखें काक पिक एक से, वाणी से पहिचान।।15।।

प्रेम 

प्रेम हिये की अनुभूति, नहि चाहे प्रतिदान।

होय चाह प्रतिदान की, उसे वासना जान ।।16।।

स्नेह

नेह   निकटता   से   बढ़े, दूरी  से  हो   दूर।

पशु पक्षी भी होंय निकट, मिले नेह भरपूर।।17।।

विनय 

मैं हूँ अधम खल कामी, करुवे    मेरे    बोल।

नाथ कर दो  मम वाणी, मीठी अरु अनमोल ।।18।।

भ्रम

स्वर्ण मृग था कहीं नहीं, भ्रम  में  भटके राम।

जो भी नर भ्रम में पड़ा, बिगड़ा उसका काम।।19।।

अल्प ज्ञानी

अल्प ज्ञानी अभिमानी, मन  से  क्रोधी  होय।

वेश   होय   आडम्बरी, क्रोधहि, आपा खोय।।20।।

राजनीति

स्वर बदला वेश बदला, जब दल बदला जाय।

साथ  में  धब्बा   काला,दल  बदलू  कहलाय।।21।।

राजनीति

मुफ्त   रेवड़ी      बांटिये,  भोली जनता साथ।

अर्थ व्यवस्था हो शिथिल,केवल  सत्ता   हाथ।।22।।

जीवन मंत्र 

जीवन के मंत्र मानो, प्रेम सत्य अरु ज्ञान।

होय विश्वास कर्म में,फल  देगा  भगवान।।23।।

निन्दित कर्म करता जो, अरु पाछे पछताय।

ऐसी  बुद्धि   कर्म   पूर्व, दौलत  घर में आय ।।24।।

जाको प्रिय मीठा वचन, ताही सों प्रिय बोल।

मृगहि हनन को व्याध भी, गावै मधुर अमोल।।25।।

अग्नि  गुरु  राजा  नारी, मध्यावस्था       सेय।

निकट होये विनाश भय, दूरहि फल नहि देय।।26।।

ऊँचे  आसन   से   नहीं, गुण से उत्तम जान।

मन्दिर शिखर पर कागा, नाहीं गरुड़ समान।।27।।

पिता जिसका रत्नाकर, बहन  लक्ष्मी  होय।

ऐसा शंख होय भिक्षुक, भीख न देता कोय।।28।।

सौ  सुत  से  उत्तम   एक , जो  होवे  वागीश।

जिमि इक चंदा तिमिर हर, कहलाये रजनीश।।29।।

प्रसंगानुसार      भाषण,शक्ति अनुसार क्रोध।

प्रकृति के अनुकूल प्रिय, बुद्धिमान कह शोध।।30।।

भेदभाव 

पुत्री  सबको  मन  भावै, बहु को सेवक जान।

जिहि घर बहुयें प्रिय लगें, ता घर स्वर्ग समान।।31।।

दृढ़ता

मन में दृढ़ता होय यदि, शिखरहु पद तल मान।

मन में दृढ़ता होय नहि, असफल जीवन जान।।32।।

जल 

औषधि है जल अपच में, पचने  पर बल देय।

भोजन  में   पीयूष   सम,भोजनान्त विष पेय ।।33।।

दोहे उषा सौन्दर्य पर

गालों पर लाली दिखे, बिंदी उसके भाल।

नित्य बुलाये विहस कर, आओ मेरे लाल।।34।।

देय  समय  पालन  शिक्षा, कभी  न  होती   लेट।

बिनु वाणी बिनु कलम के, बिना अक्षर बिनु स्लेट।।35।।

चिर सुहागिन प्रकृति से, सदा हि बिंदी भाल।

बिना जाति बिनु धर्म के, मनु  ऊषा  वाचाल।।36।।

स्वर्ग 

पुत्र   होय  आज्ञाकारी, तिय हो मन अनुसार।

अल्प विभव से तुष्टि हो, यही  स्वर्ग  का सार।।37।।

राजनीति

गुंडे    दबंग    बढ़   रहे, राजनीति के साथ।

क्रिमिनल भी हैं जुड़ रहे, लिये  पोटली हाथ।।38।।

भय

भय से डरिए ही सदा, जब तक आया नाहि।

सम्मुख आया होय भय, मार भगाओ ताहि।।39।।

चतुर 

चतुर उसे ही जानिये, जो प्रिय वादी होय।

स्पष्ट वक्ता होय यदी, धोखा नाहीं कोय।।40।।

शून्य

संतान बिन घर सूना, जनु मूरख बिन ज्ञान।

गरीबी होय  पास  में, मनु सूना  जग जान।।41।।

जोड़ी 

सदा सावधान रहिये, जोड़ी    रखिये   भाय।

वायस से सीखो इसे, 'लाल' कहत समझाय।।42।।

टहलना 

ऊषा कालहि घूमिये, श्वानहि की हो चाल।

देह   में  आये  फुर्ती, घूमे    ऊषा    काल।।43।।

शिक्षा 

अल्पहि भोजन से तुष्टि, कबहुँ न मांगे भीख।

स्वामि भक्ति अरु शूरता, श्वानहि से ही सीख।।44।।

-- लेखक एवं रचनाकार अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर कानपुर।©

– लेखक रचनाकार -अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। ©




विप्र सुदामा (खण्डकाव्य ) - अशर्फी लाल मिश्र

 --  लेखक -अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर कानपुर। Asharf Lal Mishra(1943-----) 1- विप्र सुदामा -1  [1] 2- विप्र सुदामा - 2  [1] 3- विप्र सुदामा - ...