लेखक - अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर,कानपुर
अशर्फी लाल मिश्र |
लेखनी
मत करियो कुंठित कलम, गाय मनुज यश गान।
मानव हित में लेखनी , वही लेखनी जान।।1।।
राजनीति
राजनीति की कोठरी , कालिख से भरपूर।
विरला ही कोई मिले, हो कालिख से दूर।।2।।
चुनाव आते फूटता , जातिवाद नासूर।
मतदाता को भ्रमित कर, करते चाहत पूर।।3।।
अपराधी लड़े चुनाव, नहि निर्भय मतदान।
पराजित हो अपराधी, वोटर खतरे जान।।4।।
जातिवाद का देखिये ,लोकतंत्र में खेल।
समाज सेवा होइ नहि,यह सिद्धांत अपेल।।5।।
अपराधी गले माला, राजनीति के संग।
पुलिस जिसकी तलाश में, अब वही रक्षक संग।।6।।
राजनीति में आज है, जातीयता प्रचंड।
कैसे मिठे समाज में, कौन विधि खंड खंड।।7।।
कला धन होय सफ़ेद, राजनीति के संग।
साथी सब नेता कहें ,शत्रु रह जाये दंग।।8।।
साक्षर होय केवल वह, अशिष्ट भाषा होय।
काला धन हो पास में, मंत्री बनता सोय।।9।।
उत्सव होइ चुनाव का,बजै जाति का ढोल।
खाई जनता में बढ़े ,सुन सुन कड़ुवे बोल।।10।।
जातिवाद अभिशाप है ,लोकतंत्र के देश।
समाज सेवा होइ नहि , जातिय झंडा शेष।।11।।
राजनीति की नाव पर ,चढ़ता जो असवार।
पिछड़े दलित शब्द सदा ,राखै दो पतवार।।12।।
काला धन
काला होय धंधा धन, दोनों रहते गोय।
जीवन सदा सुखी रहे , सत्ता कंधा होय।।13।।
काले धन में वह शक्ति,सत्ता देय हिलाय।
देश खोखला साथ में, छवि मलीन हो जाय।।14।।
निंदा
निंदा से घबड़ाय कर, लक्ष्य छोड़िये नाहि।
राय बदले निंदक की , देखि सफलता पाहि।।15।।
अमोघ अस्त्र राजनीति,निंदा को ही जान।
धीरज धरि नेता सुने, नेता वही महान।।16।।
जीवन
दिन बीते रात बीते, पल पल बीता जाय।
जन हित में कुछ क्षण लगें, जीवन सफल कहाय।।17।।
मित्र
मिले अचानक मीत यदि, हर्षित नाहीं नैन।
त्यागहु ऐसे मीत को,याही में सुख चैन।।18।।
चिंता
ज्यादा चिंता जो करे , रक्त चाप बढ़ जाय।
बिनु अग्नी जीवित जले, जग में होत हसाय।।19।।
भ्राता
बड़ा भ्राता पिता तुल्य ,छोटा पूत समान।
भ्राता से न बैर कभी , दौलत ओछी जान।।20।।
जुड़वां भ्राता भले ही,गुण में नहीं समान।
जैसे काँटा अरु बेर , गुण में नहीं समान।।21।।
लक्ष्मी
न युगल में लड़ाई हो,न मूर्ख पूजा जाय।
घर में कुछ संचय होय,लक्ष्मी दौड़ी आय।।22।।
चंदन निज कर से घिसे, माला गूँथे हाथ।
स्तुति लिखे जो निज कर से, लक्ष्मी रहती साथ।।23।।
त्याग
विद्याहीन गुरू त्याग, बन्धु त्याग बिनु प्रीति।
देश काल भी त्यागिये,जँह कोई नहि नीति।।24।।
धन
मीत बन्धु चाकर सभी,त्यागैं लख धनहीन।
धनहि देख सब हों निकट, धन ही श्रेष्ठ प्रवीन।।25।।
(अशर्फी लाल मिश्र)
महत्व
बूँद बूँद से घट भरे,शब्द शब्द से ज्ञान।
मात्र एक ही वोट से ,सत्ता पाय सुजान।।26।।
गुरु
माता होय प्रथम गुरू ,दूजा गुरु पितु मान।
औपचारिक देय ज्ञान ,अन्य गुरु उसे जान।।27।।
रिश्ते
अपने रिश्ते हैं वही, दुख में आयें काम।
भूलहु रिश्ते खून के ,यदि होयें बेकाम।।28।।
वाणी
वाणी जिसकी मधुर नहि,आगत आदर नाहि।
भले हि राजा देश का, मत घर जाओ ताहि।।29।।
विद्या
विद्या सदा उसे मिले,जिसे न घर का राग।
पल पल का मूल्य समझे,सुख का करता त्याग।।30।।
ईमान
अरे माटी के पुतले,बन जाये इंसान।
चंद कागज के टुकड़े ,पर खोता ईमान।।31।।
फास्ट फूड
फ़ास्ट फ़ूड सेवन करे,ताहि मुटापा होय।
शरीर का पौरुष घटे, रोग अस्थमा होय।।32।।
केश
श्वेत केश तजुर्बे के, काले केश उमंग।
काजल रेख नयन संग, मन में भरता रंग।। 33।।
मृदुलता
पाहन हिय मृदुता संग,सरल ह्रदय बन जाय।
जिमि शैल खंड जल धार,रुचिर शिवांग कहाय।।34।।
कद
छोटा कद होय पति का, पत्नी लम्बी होय।
कितनी सुन्दर होय छबि, जोड़ी फबै न सोय।।35।।
पति से होय अधिक शिक्षा,धनी मायका होय।
छोटा कद होय पति का, जोड़ी फबे न सोय।।36।।
धैर्य
विपरीति परिस्थिति जानि,धीरज राखे धीर।
अनुकूल परिस्थिति होय,जो सुमिरै रघुवीर।।37।।
माता
जननी से माता बड़ी,जिसने पालन कीन्ह।
मातु यशोदा हर कंठ, देवकी जन्म दीन्ह।।38।।
परिवर्तन
बदल रही है संस्कृती ,बदल रहा है देश।
माता पिता स्वदेश में, बेटा बसा विदेश।।39।।
कर्तव्य
सेवा नहि पितु मातु की,सेवा कैसे होय।
जैसा तेरा कर्म है,फल मिलेगा सोय।।40।।
स्वास्थ्य
चीनी मैदा मंद विष ,कम करिये उपयोग।
हो जाय हाजमा मंद,होय शुगर का योग।।41।।
तेल उबले प्रथम बार,ताही में पकवान।
उबले तेल बार बार,उसमें कैंसर जान।।42।।
आध्यात्म
उड़ जा पंछी उस देश,जहाँ न राग न द्वेष।
जँह पर कोई नहि भेद, ऐसा है वह देश।।43।।
शीतल मन्द पवन सदा,ताप नाहि उस देश।
बसिये ऐसे देश में,रोग जरा नहि शेष।।44।।
सतगुण तमगुण और रज,से चालित संसार।
चौथा गुण जो जान ले,बेड़ा उसका पार।।45।।
साधु
बचपन यौवन पार कर,वानप्रस्थ का ज्ञान।
सब माया को त्याग दे,उसे हि साधू जान।।46।।
कंचन कामिनि कीर्ति की,जिसमें इच्छा होय।
भले ही वेश साधु का,फिर भी साधु न होय।।47।।
संत उसे ही मानिये,मन से उज्ज्वल होय।
मानवता का तत्व हो,द्वेष भाव नहि कोय।।48।।
लोकतंत्र
लोकतंत्र है अग्रसर,राष्ट्रवाद की ओर।
जातिवादी राजनीति, होय रही कमजोर।।49।।
जल
पोखर ताल सिकुड़ रहे, गहरे करे न कोय।
समर पम्प घर घर लगे,अतिशय दोहन होय।।50।।
मीठा जल बरसात का,ईश्वर का वरदान।
इसको सदा सँजोइये, जल है सब की जान।।51।।
-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर , कानपुर।©